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________________ मार्गानुसारी. देखके करूणाभाष लाना यथाशक्ति उन्होंकी समाधीका उपाय करना। (२०) कीसीका पराजय करनेके इरादेसे अनितिका कार्य आरंभ नही करना, विना अपराध किसीकों तकलीफ न पहुंचाना। । (२१) गुणीजनोंका पक्षपात करना उन्होंका बहूमान करना सेवाभक्ति करना। (२२) अपने फायदेकारी भी क्यों न हो परन्तु लोग तथा राजा निषेध कीये हवे कार्य में प्रवृत्ति न करना। (२३) अपनी शक्ति देखके कार्यका प्रारंभ करना प्रारंभ किये हवे कार्यकों पार पहुंचा देना। (२४) अपने आश्रितमें रहे हवे मातापिता, स्त्रि, पुत्र, नोकरादिका पोषण ठीक तरहसे करना। कीसीको भी तकलीफ न हो एसा बर्ताव रखना। (२५) जो पुरुष व्रत तथा ज्ञानमें अपनेसे वढा हो उन्होंकों पूज्य तरीके बहूमान देना, और विनय करना। तथा गुणलेनेकि कोशीस करना। .. (२६) दीर्घदर्शी-जो कार्य करना हो उन्हीमें पहिले दीर्घद्रष्टीसे भविष्यके लाभालाभका विचार करना चाहिये। (२७) विशेषज्ञ कोइ भी वस्तु पदार्थ या कार्य हो तो उ. न्हीके अन्दर कोनसा तत्व है कि जो मेरी आत्माको हितकर्ता है या अहितकर्ता है उन्हीका विचार पहले करना चाहिये। (२८) कृतज्ञ-अपने उपर जिस्का उपकार है उन्हीको कभी मूलना नही, जहांतक बने वहांतक प्रतिउपकार करना चाहिये।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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