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________________ (६) शीघ्रबोध भाग १ लो. - (२९) लोकप्रीय-सदाचारसे एसी प्रवृत्ति अपनी रखनी चाहिये कि वह सब लोगोंको प्रीय हों अर्थात् परोपकारके लिये अपना कार्य छोडके दुसरेके कार्यको पहले करदेना चाहिये । (३०) लजावन्त-लौकीक और लोकोत्तर दोनों प्रकारकी लज्जा रखना चाहिये कारण लज्जा है सो नितिकि माता है लजावतकी लोक तारीफ करते है बहुतसी वखत अकार्यसे बच जाते है। (३१) दयालुहो-सब जीवोंपर दयाभाव रखना अपने प्राण के माफीक सब आत्मावोंकों समझके कीसीको भी नुकशान न पहुंचाना। (३२) सुन्दर आकृतिवाला अर्थात् आप हमेशां हस्तवदन आनन्दमे रहना अर्थात् कर प्रकृति या क्षीण क्षीण प्रत्ये क्रोधमानादि कि वृत्ति न रखना। शान्त प्रकृति रखनेसे अनेक गुणोंकि प्राप्ती होती है। (३३) उन्मार्ग जाते हुवे जीवोंको हितबोध देके अच्छे रहस्तेका बोध करना उन्मार्गका फल कहते इथे मधुर वचनोंसे समझाना। (३४) अन्तरंग वैरी क्रोध, मान, माया, लोभ, हर्ष, शोक इन्होंके पराजय करनेका उपाय या साधनों तैयार करतेहूवे वैरीयोंको अपने कब्जे करना। (३५) जीवकों अधिक भ्रमण करानेवाले विषय (पंचेन्द्रिव) और कषाय है उनका दमन करना, अच्छे महात्मावोंकी सत्संग करते रहना, अर्थात् मोक्षमार्ग बतलानेवाले महात्मा ही होते है सन्मार्गका प्रथम उपाय सत्संग है। यापैतीस बोल संक्षेपसे ही लिखा हैकारण कंठस्थ करनेवा
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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