SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आहाराधिकार. (२१५) विगर स्पर्श किये पुद्गल अनंतगुणे इसी माफीक चोरिन्द्रिय. पांचेन्द्रिय और मनुष्यभी समझना। (८) नारकी जो पुद्गल आहारपणे ग्रहन करते है वह नारकीके कीस कार्यपणे प्रणमते है ? नारकीके आहार किये हुवे पुद्गल श्रोत्रेन्द्रिय. चक्षुइन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय रसेन्द्रिय स्पर्शन्द्रिय अनिष्ट अक्रान्त अप्रिय अमनोज्ञ विशेष अमनोज्ञ अशुभ अनिच्छापणे भेदपणे ऊंचापणे नौं किन्तु निचापणे, सुखपणे नही, किन्तु दुःखपणे, इन सत्तरा बोलोंपणे वारवार प्रणमते है. पांच स्थावर तीनवैकलेन्द्रिय तीर्यच पांचेन्द्रिय और मनुष्य इन दश दंडकोंमें औदारीक शरीर होनेसे अपनि अपनि इन्द्रियोंके सुख और दुःख दोनोंपणे प्रणमते है। देवतोंके तेरह दंडकमें नरकसे उलटे याने सत्तरा बोलोभी अच्छे सुखकारी प्रणमते है अर्थात् नारकीमें आहारके पुद्गल एकान्त दुःखपणे देवतोंमें ए. कान्त सुखपणे और औदारीक शरीरवाले शेषजीवोंके सुख दुःख दोनोंपणे प्रणमते है। (६) नारकीके नैरिय जो पुद्गल आहारपणे ग्रहन करते है वह क्या एकेन्द्रियके शरीर है यावत् क्या पांचेन्द्रियके शरीर है ? पूर्व पर्यायापेक्षातो जो जीव अपना शरीर छोडा है उनोकाही शरीर है चाहे एकन्द्रिय के हो यावत् चाहे पांचेन्द्रियका हो और वर्तमान वह पुद्गल नारकी ग्रहन किये हुवे है वास्ते पांचेन्द्रिय के पुद्गल कहा जाते है एवं १६ दंडक एवं पांच स्थाघर परन्तु वर्तमान एकेन्द्रिय के पुद्गल कहा जाते है एवं बेन्द्रिय तेइन्द्रिय चोरिन्द्रिय अपनि अपनि इन्द्रिय कहना कारण पहले आहार लेनेवाले जीव उन पुद्गलोंकों अपना करलेते है वास्ते उनोंके ही पुद्गल कहलाते है।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy