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________________ ( २१६) शीघ्रबोध भाग ३ जो. (१०) नारकी देवता और पांच स्थावर-रोमाहारी है. किन्तु प्रक्षेप आहारी नही है.तीन वैकलेन्द्रिय. तीर्यच पांचेन्द्रिय और मनुष्य रोमाहारी तथा प्रक्षेपाहारी दोनों प्रकारके होते है। (११) नारकी पांच स्थावर तीन वैकलेन्द्रिय तीर्यच पांचेन्द्रिय और मनुष्य ओजाहारी है और देवता ओज आहारी ओर मन इच्छताहारी भी है कारण देवता मन इच्छा करे वेसे पुद्गलोका आहार कर सके है शेष जीवकों जेसा पुद्गल मीले वेसोंका ही आहार करना पडता है इति । सेवं भंते सेवं भंते-तमेव सच्चम् ।। थोकडा नम्बर. २५ . (सूत्र श्री पनवणाजी पद ७ वा श्वासोश्वास ) नारकीके नैरिया श्वासोश्वास लोहारकि धमणकि माफीक लेते है तीर्यच और मनुष्य बे मात्रा याने जल्दीसे या धीरे धीरे दोनों प्रकारसे श्वासोश्वास लेते है । देवतोंमें असुर कुमारके देव जघन्यसे सात स्तोक कालसे उत्कृष्ट साधिक एक पक्ष ( पन्द्रा. दिन ) से श्वासोश्वास लेते है । नागादि नौ निकायके देव तथा व्यंतर देव ज. सात स्तोक कालसे उ० प्रत्येक महुर्तसे । ज्योतिषीदेव ज. प्रत्येक महूर्त उ० प्रत्येक महुर्त. सौधर्म देवलोकके देव ज० प्रत्येक महुर्त उ० दो पक्षसे ईशानदेव ज० प्रत्येक महुर्त उ० साधिक दो पक्षसे. सनत्कुमारके देव ज.दो पक्ष उ० सात पक्ष. महेन्द्र ज०दो पक्ष साधिक उ० साधिक सात पक्षसे. ब्रह्मदेव ज. सातपक्ष उदशपक्षसे, लांतकदेव, ज० दशपक्ष, उ० चौ
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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