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________________ नयाधिकार. ( १५७ ) मीलते है । जिस व्यवहारनयके दो भेद है (१) शुद्ध व्यवहारनय (२) अशुद्ध व्यवहारनय । (४) ऋजुसूत्रनय - सरलता से बोध होना उसे ऋजुसूत्रनय कहते है ऋजुसूत्रनय भूत भविष्यकाल को नही माने मात्र एक वर्तमानकालको ही मानते है ऋजुसूत्रनयवाला सामान्य नही माने विशेष माने. एक वर्तमानकालकि वात माने निक्षेपा एक भाव माने. परवस्तु को अपने लिये निरर्थक माने ' आकाशकुसु मवत् ' जेसे कीसीने कहा की सो वर्षो पहले सूवर्णेक वर्षाद हुइथी तथा सो वर्षों के बाद सूवर्ण कि वर्षाद होगा ? निरर्थक अर्थात् भूत भविष्य में जो कार्य होगा वह हमारे लिये निरर्थक है यह नय वर्तमानकाल को मौरव्य मानते है जेसे एक साहुकार अपने घरमें सामायिक कर बैठा था इतनेमें एक मुसाफर आके उन सेठके लडके की ओरतसे पुछा की बेहन ! तुमारा सुसराजी कहां गये है ? उन औरतने उत्तर दीया कि मेरे सुसराजी पसारोकी दुकांन सुंठ हरडे खरीदने कों गये है वह मुसाफर वहां जाके तलास की परन्तु सेठजी वहांपर न मीलने से वह पीछा सेठजीके घरपर आके पुच्छा तो उन ओरतने कहाकि मेरे सुसराजी मोचीके वहां जुते खरीदनेकों गये है इसपर वह मुसाफर मोचीके वहां जाके तलास करो वहांपर सेठजी न मीले, तब फीर के पुनः सेठजीके घरपे आये इतनेमें सेठजीके सामायिकका काल होजाने से अपनि सामायिक पार उन मुसाफरसे वात कर विदा किया फीर अपने लडकेकी ओरत से पुच्छा कि क्यों बहुजी में सामायिक कर घर के अन्दर बेठाथा यह तुम जानती थी फीर उन मुसाफर को खाली तकलीफ क्यों दीथी बहुजीने कहा क्यों सुसराजी आपका चित दोनों स्थानपर गयाथा
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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