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________________ ( १५८) शीघ्रबोध भाग ३ जो. मा नही ? सेठजीने कहा वात सत्य है मेरा दील दोनों स्थानपर गयाथा इससे यह पाया जाता है कि सेठजी के लडकेकी ओरत ज्ञानवन्त थी इसी माफीक ऋजुसूत्रनय गृहवासमें बेठ हुए के त्याग प्रणाम होनेसे साधु माने और साधुवेश धारण करनेवाले मुनियोंका प्रणाम गृहस्थावासका होनेसे उने गृहस्थ माने । इति इन च्यार नयको द्रव्यास्तिकनय कहते है इन च्यार नयकि समकित तथा देशव्रत सर्वव्रत भव्याभव्य दोनों को होते है परन्तु शुद्ध उपयोग रहीत होनेसे जीवोका कल्याण नही हो सके ! (५) शब्दनय-शब्दनयवाला शब्दपर आरूढ हो सरीखे शब्दोंका एकही अर्थ करे शब्दनयवाला सामान्य नही माने. विशेष माने वर्तमानकालकी वात माने निक्षेपा एक भाव माने वस्तुमें लिंगभेद नही माने जेसे शकेन्द्र देवेन्द्र पुरेन्द्र सूचिपति इन सबको एकही माने । यह शन्दनय शुद्ध उपयोग को माननेवाला है। (६) संभिरूढनय-सामान्य नही माने विशेष माने वर्त. मानकालकी बात माने निक्षेपा भाव माने लिंगमें भेद माने.शब्द का अर्थ भिन्न भिन्न माने जेसे शक्रनाम का सिंहासनपर देवतोकि परिषदामें बेठे हुवे को शक्रेन्द्र माने. देवतोमें बेठा हुवा इन्साफ कर अपनि आज्ञा मान्य करावे उसे देवेन्द्र मानें हाथ में वन ले देवतों के पुरको विदारे उसे पुरेन्द्र माने. अप्सराघोंके महलोमें नाटकादि पांचो इन्द्रियों के सुख भोगवताको सचीपती मान. संभिरूढवाला एक अंश उनी वस्तुको वस्तु माने अर्थात् नो अंश उणा है वह भी प्रगट होनेवाले है उसे संभिरूढ कहा माते है। (७) एवंभूत नयवाला-सामान्य नही माने विशेष माने
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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