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________________ नवतत्त्व. ( १२१) प्रकारका अप्रशस्त विनय होते है अर्थात् विनय तो करे परन्तु मन उक्त अशुद्ध कार्य में लगा रखे इनोसे अप्रशस्त विनय होते है एवं २४ भेद मन विनयका है। वचन विनयका भी २४ भेद है, मूल भेद दो. (१) प्रशस्त विनय, ( २ ) अप्रशस्त विनय, दोनोंके २४ भेद मन विनयकि माफीक समझना। काय विनयके १४ भेद है मूल भेद दो (१) प्रशस्तविनय, ( २ ) अप्रशस्त विनय, जिस्मे प्रशस्त विनय के ७ भेद है. उप. योग सहित यत्नापूर्वक चलना, बेठना उभारहना सुना एक वस्तुकों एक दफे उलंघन करना तथा वारंवार उलंघन करना इन्द्रियों तथा कायाको सर्व कार्यमें यत्ना पूर्वक वरताना. इसी माफीक अप्रशस्त विनयके ७ भेद है परन्तु विनय करते समय कायाको उक्त कार्यों में अयत्नासे वरतावे एवं १४. लोकोपचार विनयके ७ भेद है यथा (१) सदैव गुरुकुलवासाकों सेवन करे, ( २ ) सदेव गुरु आज्ञाकों ही परिमाण करे और प्रवृति करे, (३) अन्य मुनियोंका कार्य भि यथाशक्ति करके परको साता उपजावे, (४) दुसरोंका अपने उपर उपकार है तो उनोंके बदलेमें प्रत्युपकार करना, (५) ग्लानि मुनियों कि गवेषना कर उनोंकि व्यावच्च करना, (६) द्रव्य क्षेत्र काल भावको जानकर बन आचार्यादि सर्व संघका विनय करना, (७) सर्व साधुवोंके सर्व कार्यमें सबकों प्रसन्नता रखना यहही धर्मका लक्षण है इति. (८) व्यावञ्च तपके दश भेद है आचार्य महाराज उपाध्यायजी स्थिवरजी गण (बहुताचार्य) कुल (बहुताचार्यों • के शिष्य समुदाय) संघ, स्वाधर्मि, तपस्वी मुनिकी क्रियावन्तकि नवदिक्षित शिष्य इन दशों जीवांकी बहुमान पूर्वक
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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