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________________ (१२२) शीघ्रबोध भाग २ जो. व्यावञ्च करे याने आहारपाणी लाके देखें और भी यथा उचित कार्यमें सहायता पहुंचाना जिनसे कर्मोकी महा निर्जरा और संसारसमुद्रसे पार होनेका सिधा रहस्ता है। (१०) स्वाध्याय तपके पांच भेद है. याचना देना या लेना, पृच्छना-प्रभादिका पुच्छना. परावर्तना-पठनपाठन करना. अनुपेक्ष पठनपाठन कीये हुवे ज्ञानमें तत्त्वरमणता करना. धर्मकथाधर्माभिलाषीयोको धर्मकथा सुनाना || तीन जनोंको वाचना नहीं देना. (१) नित्य विगइ याने सरस आहारके करनेवालेको. (२) अविनयवंतको, (३) दीर्घ कषायवालेको। तीन जनोंको वाचना देना चाहिये. विनयवंतको, निरस भोजन करनेवालेको २ जिस्के कोध उपशान्त हो गया है तथा अन्यतीर्थी पाखंडी हो धर्मका द्वेषी हो उनको भी वाचना न देनी और न उनोंसे वाचना लेनी, कारण वाचना देनेसे उनोंको विप्रीत होगा ता धर्मकी निंदा करेंगा और वाचना लेना पडे तो भी वह उपहास करेंगे कि जैनोंको हम पढाते है, हम जैनोंके गुरु है, इस वास्ते एसे धर्मद्वेषीयोंसे दूर ही रहना अच्छा है. अगर भद्रिक प्रणामी हो उसे उपदेश देना और मिथ्यात्वका रहस्ता छोडाना मुनियोंकी वाचनाकी विधिका छे भेद है. संहितापद, पदछेद, अन्वय, अर्थ, नियुक्ति तथा सामान्यार्थ और विशेषार्थ । प्रश्नादि पूच्छनेका सात भेद है। पहले व्याख्यानादि शान्त चित्तसे श्रवण करे. गुरवादिका बहुमान करे अर्थात् वाणि झेले हुंकारा देवे. तहकार करे अर्थात् भगवानका वचन सत्य है. जो पदार्थ समझमें नहीं आवे उनोंके लिये तर्क करे, उनका उत्तर सुन विचार करे. विस्तारसे ग्रहन करे, ग्रहन कीये ज्ञानको धारण कर याद रखे।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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