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________________ ( १२०) शीघबोध भाग २ जो. न करे. अरिहंतोंके धर्मकि आ० आचार्य उपाध्याय स्थविर कुल० गण० संघ० क्रियावंत० संभोगी स्वामि, मतिज्ञान, श्रुतिज्ञान अवधिज्ञान मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान इन १५ महापुरुषोंकि आशातना न करे इन पंदरोंका बहुमान करे इन पंदरों कि सेवा भक्ति करे एवं ४५ प्रकारका विनय समझना। ___ नोट- दशवा बोलमें संभोगी कहा है जिस्का समवायांगजी सूत्र में संभोग बारहा प्रकारका कहा है अर्थात् सरीखी समाचारी वाले साधुवोंके साथ अल्पा स्वल्पा करना जेसे एक गच्छके साधुवाँसे दुसरे गच्छके साधुवोंको औपधिका लेन देन रखना, सूत्र वाचनाका लेना देना, आहारपाणीका लेना देना, अर्थ वाचना लेना देना, आपसमे हाथ जोडना, आमंत्रण करना, उठके खडा होना, वन्दना करना, व्यावच्च करना, साथ में रहना, एक आसन पर बेठना, आलाप संलापका करना. ___ चारित्रविनयके पांच भेद सामायिक चारित्रका विनय करे. छदोपस्थापनिय चारित्रका विनय करे, परिहारविशुद्ध चारित्रका विनय करे, सूक्ष्म संपराय चारित्रका विनय करे. यथाख्यात चारित्रका विनय करे।। मनविनयके भेद २४ मूल भेद दोय. (१) प्रशस्त विनय, (२) अप्रशस्त विनय, जैसे प्रशस्त विनयके १२ भेद है मनों सावध कार्यमें जाते हुवेको रोकना, इसी माफीक पापक्रियासे रोकना, कर्कश कार्यसे रोकना. कठोर कार्यसे रोकना, फरूसतीक्षण पापसे रोकना, निष्ठुर कार्यसे रोकना, आश्रवसे रोकना, छेद करानेसे, भेद करानेसे, परितापना करानेसे, उद्विग्न करानेसे और जीवोंकि घात करानेसे रोकना इसका नाम प्रशस्त मन विनय है और इन बारहा बोलोंकों विप्रीत करनेसे बारहा
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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