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________________ नवतत्त्व (११९) लोंके मर्म प्रकाश न करे. निर्वाहाकरने योग्य हो अनालोचनाके अनर्थ बतलानेमे चातुर हो. प्रीय धर्मों हो. और दृढधर्मी हो । दश प्रकार के प्रायश्चित आलोचना, प्रतिक्रमण, दोनों साथमें करावे. विभाग कराना. कायोत्सर्ग कराना. तप, छेद. मूलसे फीर दीक्षा देना, अणुठप्पा. और पारंचिय प्रायश्चित इन ५० बो. लोका विशेष खुलासा दे,खो शीघ्रबोध भाग २२ के अन्तमे इति । (८) विनयतप जिस्का मूल भेद ७ है यथा. ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय, मनविनय, वचनविनय, कायविनय, लोकोपचार विनय, इन सात प्रकार विनयके उत्तर भेद ज्ञानविनयके पांच भेद है मतिज्ञानका विनय करे, श्रुतिज्ञानका विनय करे. अवधि ज्ञानका विनय करे, मनः पर्यवज्ञानका विनय करे, केवलज्ञानका विनय करे, इन पांचों ज्ञानका गुण करे, भक्ति करे, पूजा करे, बहुमान करे तथा इन पांचों ज्ञानके धारण करनेवालोंका बहुमान भक्ति करे तथा ज्ञानपद कि आराधना करे। दर्शन विनयका मूल भेद दो है. (१) शुश्रुषा विनय, (२) अनाशातना विनय, जिस्मे शुश्रुषा विनयका दश भेद है. गुरुः महाराजकों देख खडा होना, आसनकि आमन्त्रण करना, आसन विच्छादेना, वन्दन करना पांचांग नामाके नमस्कार करना वस्त्रादिदे के सत्कार करना गुण कीर्तनसे सन्मान करना. गरु पधारे तो सामने लेनेको जाना. विराजे वहांतक सेवा करना. पधारे जब साथमें पहुंचानेको जाना, इत्यादि इनकों शुश्रपा विनय कहते है। अनअशातनाविनयके ४५ भेद है अरिहन्तोंकि आशातना
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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