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________________ ( ९८ ) शोध भाग २ जो. ऋण्डे महाकण्डे कोहंड पयंगदेवा, वाणव्यंत रोमें दश जातिके जंमृकदेवोंके नाम आणजं भूक प्राणजंक लेणजं भूक शेनजंभूक वखजे तक पुष्पजं भूक फलक पुष्पफलजंसक विद्युत्सूक अजिंक ज्योतिषीदेव पांच प्रकार के है. चन्द्र सूर्य, ग्रह नक्षत्र, तारा पांच स्थिर अढाइ द्विपके बाहार है जिनोंकि क्रान्ति अन्दर के ज्योतिषयोंसे आदि है सूर्य सूर्य के लक्ष योजन और सूर्य चन्द्रके पचास हजार योजना अन्तर है. आढाइ द्विपके बाहार जहांदिन है वहां दिनही है और जहां रात्री है वहां रात्रीही है और पांचों प्रकार के ज्योतिषी आढाइ द्विपके अन्दर है यह सब गमनागमन करते रहते है । चन्द्र सूर्य ग्रह नक्षत्र तारा । वैमानिक देवो के दो भेद है. (१) कल्प, (२) कल्पअतित. जो कल्प मानवासी देव है उनमें इन्द्र सामानिक आदि देवों काँ छोटा बढापणा है जिनोंके बारहा भेद है सौधर्मकल्प, इशान कल्प सनत्कुमार, महेन्द्र ब्रह्मदेवलोक लंतकदेवलोक महाशुक्रदेवलोक सहस्रादेवलोक अणत्देवलोक पणतदेवलोक अरणदेवलोक अच्युत देवर्लोक | जो तीन कल्विषीदेव है वह मनुष्यभवमें आचार्योपाध्याय के अवगुण बाद बोलके कल्विषीदेव होते है वहांपर अच्छे देव उनसे अद्भुत रखते है. अपने विमानमें आने नहो देते है अर्थात् बडा भारी तिरस्कार करते है जिनके तीन भेद है (२) तीन पल्योपमकि स्थितिवाले पहले दुसरे देवलोकके बाहार रहते है (२ तीन सागरोपमकी स्थितिवाले, तीजा चोधा देवलोक के बाहार रहते है (३) तेरह सागरोपमकी स्थितिवाले छठा देवलोकके बाहार रहते है. और पांचमा देवलोक के तीसरा रिष्ट नामके परतर में नौ लोकांतिकदेव रहते है उनका नाम
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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