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________________ जीवतत्त्व. (९९) सारस्वत आदित्य बिनय वारूण गन्धोतीये तुसीये अव्याबाद अगिचा और रिष्ट ॥ कल्पातित्त-जहां छोटे बडेका कायदा नही है अर्थात् जहां सबदेव 'अहमिदा' है उनों के दो भेद है ग्रीवग और अनुत्तर वैमान जिस्मे ग्रीवैगके नौ भेद है यथा-भद्दे सुभद्दे सुजाये सुमानसे सुदर्शने प्रीयदर्शने आमोय सुपडिबुद्धे और यशोधरे। अनु. तर वैमानके पांच भेद है. विजय विजयवन्त जयन्त अपराजित और सर्वार्थ सिद्ध वैमान इति १०-१५-१६-१०-१२-९-३-९-५ एवं ९९ प्रकोरके देवतोंके पर्याप्ता अपर्याप्ता करनेसे १९८ भेद देवतोंके होते है देवतोंके स्थान भुवनपतिदेवता अधोलोकमे रहते है घाणमित्र व्यंतर) ज्योतिषीदेव तो लोकमें और वमा. निकदेव उर्वलोकमें निवास करते है इति । उपर बतलाये हुवे ५६३ भेद जीवोंका संक्षेपमें निर्णय१४ नरक सातोंका पर्याप्ता अपर्याप्ता । ४८ तीर्यचके सूक्ष्म पृथ्वीकायके पर्याप्ता अपर्याप्ता बादर पृथ्वीकायके पर्याप्ता अपर्याप्ता एवं ४ भेद अपकायके चार भेद तेउकायके च्यार भेद वायुकायके च्यार भेद और वनास्पति जो सूक्षम साधारण प्रत्येक इन तीनों में पर्याप्ता अपर्याप्ता से छे भेद मीलाके २२ भेद. बे इन्द्रिय तेइन्द्रिय चोरिन्द्रिय इन तीनोंके पर्याप्ता अपर्याप्ता मीलाके ६ भेद. तीच पांचेन्द्रिके जलचर स्थलचर खेचर उरपुर भुजपुर यह पांच संज्ञी और पांच असंज्ञी मील दश भेद इनोंके पर्याप्ता अपर्याप्ता मीलके २० भेद होते है २२-६-२० सई ४८ भेद। ३०३ मनुष्य-क्रमभूमि १५ अकर्मभूमि ३० अन्तर दिपा ५६
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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