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________________ (९६) शीघ्रबोध भाग २ जो. जहांपर भाषा, आचार, व्यवहार, वैपारादि आर्यकर्म होते है ऋतु समफल देवे उनीकों आर्यदेश कहते है। .. ___ आर्यजातिके छ भेद है. यथा-अम्बष्टजाति, किलंदजाति, विदेहजाति, वेदांगजाति, हरितजाति, चुचणरुपाजाति. उन जमाने में यह जातियों उत्तम गीनी जाती थी। __कुलार्यके छे भेद है. उग्रकुल, भोगकुल, राजनकुल, इक्षाककुल, ज्ञातकुल, कोरवकुल. इन छे कुलोसे केइ कुल निकले है, इन कुलोको उत्तम कुल माने गये थे। कर्मआय-वैपार करना. जैसे कपडाका वैपार, रुईका वैपार, सुतके वैपार, सोनाचान्दीके दागीनेका वैपार, कांसी पीतलके वरतनोंके वैपार, उत्तम जातिके क्रियाणाके वैपार. अर्थात् जिस्में पंदरा कर्मादान न हो, पांचेन्द्रियादि जीवोंका बध न हो उसे कर्मआर्य कहते है। शिल्पार्य-जैसे तुनारकी कला. तंतुवय याने कपडे बनानेकी कला, काष्ट कोरनेकी, चित्र करनेकी, सोनाचन्दी घडनेकी मुंजकला, दान्तकला, संखकला, पत्थर चित्रकला, पत्थर कोरणी कला, रांगनकला, कोष्टागार निपजाने की कला, गुंथणकला, बन्धगलबन्धन कला, पाक पकाबनेकी कला इत्यादि. यह आर्यभूमिकी आये कलावों है। भाषार्य-जो अर्ध मागधी भाषा है, वह आर्य भाषा है. इनके सिवाय भाषाके लिये अठारा जातिकी लीपी है वह भी आर्य है। . ज्ञानार्य के पांच भेद है. मतिज्ञान, श्रुतिज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान. इन पांचों ज्ञानोंको आर्य ज्ञान कहते है। ____ दर्शनार्य के दो भेद है. (१) सराग दर्शनार्य, (२) वीतराग दर्शनार्य. जिसमें सराग दर्शनार्य के दश भेद है।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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