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________________ (७८) शीघ्रबोध भाग २ जा. जरा और मोक्षतत्व जानके अंगीकार करने योग्य है पुन्यतय नैगमन के मत से स्वीकार करने योग्य है कारण मनुष्यजन्म उत्तम कुल, शरीर निरोग्य, पूर्ण इन्द्रिय, दीर्घ आयुष्य, धर्म सामग्री आदि सब पुग्योदयसे ही मीलती है व्यवहार नयके मतसे पुन्य जानने योग्य है और एवंभुत नयके मतसे पुन्य जानके परित्याग करने योग्य है कारण मोक्ष जानेवालोंकों पुन्य बाधाकारी है पुन्य पापका क्षय होनेसे जीवोंका मोक्ष होता है। नवतवमे च्यार तत्व जीव है-जीव, संवर, निर्ज्जरा, और मोक्ष. तथा पांच तत्व अजीव है-अजीव पुन्य पाप - आश्रम और बन्धतत्व । नवतत्त्वका च्यार तत्व रूपी है पुन्य-पाप-आश्रव और बन्ध च्यार तत्व अरूपी है जीव संवर निर्जरा और मोक्ष तथा अजीवतत्व रूपी अरूपी दोनों है. निश्चयनयसे जीवतत्व है सो जीव है और अजीवतत्व है सो अजीब है शेष सात तत्व जीव अजीवकि पर्याय है यथा संवर निर्जरा मोक्ष यह तीन तत्व जीवकि पर्याय है, पाप पुन्य आश्रय बन्ध यह व्यार तत्व अजीवको पर्याय है। अजीव पाप पुन्य आश्रव और बन्ध यह पांचतत्व जीवके शत्रु है संवर तत्व जीवका मित्र है, निजैरातत्व जीवको मोक्ष पहुंचानेवाला बोलावा है. मोक्ष तत्व जीवका घर है. नवतत्वपर च्यार निक्षेपा-नामनिक्षेपा. जीवाजीवका नाम नवतत्व रखा, अक्षर लिखना तथा चित्रादिकि स्थापना करना यह नवतत्वका स्थापना निक्षेपा है. उपयोग रहीत नवतत्वाध्ययन करना वह द्रव्यनिक्षेपा है सम्यक्प्रकारे यथार्थ नवतत्वका स्वरूप समजना यह भावनिक्षेपा है
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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