SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवतत्त्व. (७९) नवतत्वपर सात नय नैगमनय नवतत्व शब्दकों तत्व माने. संग्रहनय तत्वकि सत्ताको तत्व माने. व्यवहार नय जीव अजीव यह दोय तत्व माने. ऋजु सूत्रनय छे तत्व माने. जीव अजीव पुन्य पाप आश्रय बन्ध, शब्दनय सात तत्व माने छे पुर्ववत् यक संबर. संभिरूढनय आठ तत्व माने निर्जराधिक. एवंमृत नय नव तत्व माने । नव तत्वपर द्रव्य क्षेत्र काल भाष-द्रव्यसे नवतत्व जीव अजीव द्रव्य है क्षेत्रसे जीव अजीव पुन्य पाप आश्रव बन्ध सर्व लोकमें है सवर निर्जरा और मोक्ष प्रस नालीमें है. का. लसे नवतत्व अनादि अनंत है कारण नवतत्व लोकमें सास्थता है भावसे अपने अपने गुणों में प्रवृत रहे है। नवतत्त्वका विशेष विवेचन इस माफीक है । (१) जीवतत्त्व-जीवका सम्यक प्रकारे ज्ञान होना जेसे जीवके चैतन्य लक्षण है व्यवहारनयसे जीव पुन्य पापका कर्ता है सुख दुःखके भोक्ता है पर्याय प्राण गुणस्थानादिकर संयुक्त द्रव्ये जीव सास्वता है पर्याय (गतिअपेक्षा ) अमास्वताभी है. मृतकालमें जीवथा वर्तमानकाल में जीव है मविष्य में जीव रहेंगे । तीनकालमें जीवका अजीव होवे नही उसे जीव कहते है निश्चयनयसे जीव अमर है कर्मों का अकर्ता है और व्यवहार नयसे जीव मरे है कर्मों का कर्ता है अनादि कालसे जीवके साथ कर्मोका संयोग है जेसे दुध घृत तीलोम तेल धूलमे धातु चमें रस पुष्पों में सुगन्ध चन्द्रकान्ता मणिमे अमृत इमी माफीक जीव और कर्माका अनादि कालसे सबन्ध है दृष्टान्त सोना निर्मल है परन्तु अग्निके संयोगसे अपना स्वरूपको छोड अग्नि के स्वरूप को धारण कर लेता है इसो माफीक अनादि काल के अज्ञान के वस क्रोधादि संयोगसे जीव अज्ञानी कर्मवाला कह.
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy