SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री रत्नप्रभाकरज्ञानपुष्पमाला पुष्प नं. २७ श्री ककसूरी सद्गुरुभ्यो नमः अथ श्री शीघ्रबोध भाग २ जा. थोकडा नम्बर १८. ( नवतत्त्व ) पावासव संवरो य निझरणा !! गाथा - जीवाजीवा पुष्पं बंधी मुक्खा य तहा, नवतत्ता हुंति नायव्वा ॥ १ ॥ ( श्री उत्तराध्ययन अ० २८ वचनात ) (१) जीवतत्त्व - जीवके चैतन्यता लक्षण है ( २ ) अजीवतत्त्व - अजीवके जडता लक्षण है (३) पुन्यतत्व - पुन्यका शुभफल लक्षण है (४) पापस्य - पापका अशुभफल लक्षण है (५) आश्रवतत्त्व - पुन्य पाप आनेका दरवाजा लक्षण है (६) संवरतत्व - आते हुवे कर्मोंको रोक रखना ( ७ ) निजैरातत्व - उदय आये कर्मोंकों भोगवके दूर करना ( ८ ) बन्धतत्व - २ - रागद्वेषके परिणामोंसे कर्मका बन्धना. ( ९ ) मोक्षतत्व - सर्व कर्म क्षयकर सिद्धपद प्राप्त करना. इन नवतत्वमें जीव अजीवतत्व जानने योग्य है. पाप आ श्रव और बन्धतत्व जानके परित्याग करने योग्य है. संवर नि
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy