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________________ परम कल्याण. (५७) (१७) अपने व्रतोसे गीरते हुवे जीवोंके स्थिर करनेसे 'परम 'राजमति और रहनेमिकी माफीक (श्री उत्तराध्ययन (१८) उग्र तपश्चर्या करते हुवे जीवोंका ' परम०' धन्नामुनिकि माफीक (श्री अनुत्तर उववाइ सूत्र ) (१९) अग्लानपणे गुरुवादिकिवेयावञ्च करनेसे 'परम०' पन्थकमुनिकी माफीक ( श्री ज्ञातासूत्र ) (२०) सदैव अनित्य भावना भावनेसे जीवोंका ‘परम' भरतचक्रवर्तिकि माफीक (श्री जम्बुद्विपप्रज्ञप्ति सूत्र ) (२१) प्रणामोंकि लहरोंको रोकनेसे जीवोंके ‘परम०' प्रसन्नचन्द्रमुनिकी माफीक (श्रेणिकचरित्रमें) (२२) सत्यज्ञानपर श्रद्धा रखनेसे जीवोंके 'परम० ' अर्हअक श्रावककी माफीक (श्री ज्ञातासूत्र ) (२३) चतुर्विधसंघकि वैयावच्च करनेसे जीवोंके 'परम' सनत्कुमार चक्रवत्तिके पुर्वके भवकि माफीक (श्री भगवती सूत्र) । २४ ) चढते भावोंसे मुनियोंकि वैयावञ्च करनेसे 'परम' बाहुबलजीके पुर्वभवकी माफीक ( श्री ऋषभचरित्र) (२५) शुद्ध अभिग्रह करनेसे जीवोंके 'परम० ' पांच पांडवोंकि माफीक (श्री ज्ञातास्त्र) (२६) धर्म दलाली करनेसे जीवोंके “परम " श्रीकृष्ण नरेशकि माफीक (श्री अंतगडदशांग सूत्र ) (२७) सूत्रज्ञानकि भक्ति करनेसे जीवों के " परम" उदाइराजाकि माफिक ( श्री भगवतीसूत्र ) (२८) जीवदया पाले तो जीवोंके " परम०" श्री धर्मरूची अणगारकी माफीक ( श्री ज्ञातासूत्र ) .
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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