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________________ जलदी मोक्ष. (५५) (१९) धर्मध्यान-शुक्लध्यान ध्यानेसे जलदी २ मोक्ष जावे । (२०) एक मासमें छे छे पौषध करनेसे ,, (२१) उभयकाल प्रतिक्रमण करनेसे , , ( २२) रात्रीके अन्तमें धर्मजाग्रना ( तीन मनोरथ ) करे तो जलदी २ मोक्ष जावे। ( २३ ) आराधि हो आलोचना कर समाधि मरन मरे तो जलदी २ मोक्ष जाये। इन तेवीस बोलोंको पहले सम्यकप्रकारसे जानके सेवन करनेसे जीव जलदी २ मोक्ष जाते है इति । ॥ सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ॥ थोकडा नम्बर १५ (परम कल्याणके ४० वोल.) नीयों के परम कल्याण के लिये आगमोंसें अति उपयोगी बोलोंका संग्रह किया जाता है. (१) समकित निर्मल पालनेसे 'जीवोंका परमकल्याण' होता है। राजा श्रेणिक कि माफीक ( श्री स्थानायांग सूत्र ) (२) तपश्चर्या कर निदान न करनेसे जीवोंका “परम कल्याण होता है"तांमली तापसकि माफीक (सूत्र श्री भगवतीजी) (३) मन वचन कायाके योगोंको निश्चल करनेसे जीवोंका “परम०" गजसुकमाल मुनिकि माफीक (श्री अंतगढ सूत्र) (४) ससामर्थ्य क्षमा धर्मकों धारण कर नेसे जीवोंके "परम" अर्जुनमालीकि माफीक (श्री अंतगढ सूत्र)
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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