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________________ १२२ संगीतरत्नाकरः [प्रकरणम् रीरीरीरीरी मगपधा पधनीधापामा गारी मागा रीरी गमगम रीगामागा रीधानीरीमा सनी सनी धाधाइत्यालापः। (धैवत) सनिगनिस रिग रिम सनि धनि धममाध धमनिनि धधधध रीरीरीरी गम । ममं गारी धापामगरीमागारी सनी धधनी गगा। सनी सनी धानीमांधा सनीनीधाधा-इति रूपकम् । इति द्वितीयललिता । इति ललिता। ___ प्रथमसैन्धवी चतुर्धा सैन्धवी तत्र टक्कभाषा रिपोज्झिता ॥१७७॥ सन्यासांशग्रहा सान्द्रा गमकैर्लचितस्वरैः । सगतारा षड्जमन्द्रा गेया सर्वरसेष्वसौ ॥ १७८ ॥ सासासासा मांसा मांसा सा। मंस गामा गासा सागां सामां सासमम गामा गममस नीगससा सनी मांस नीगां नीधांधां। धमाधांधाधं मानी नीनी धमाधाधा धाध मनी नीनीं धनी धनी सासा-इत्यालापः। (मध्यम)म(षड्ज) स सागाससा। नीनीनीनी सधंनीस नीधाधा धमा धममनी धाधाधममनि नीनीनीनीनीनी सनी सनी गगसासा ममगममम धग गगसम नीनीधध (सं०) सैन्धवीं विभज्य लक्षयति-चतुर्धेति । टक्कभाषा या सैन्धवी सा ऋषभपञ्चमहीना । गमकैः सान्द्रा व्याप्ता । लवितस्वरैः द्रुतस्वरैः । द्वितीय Scanned by Gitarth Ganga Research Institute
SR No.034228
Book TitleSangit Ratnakar Part 02 Kalanidhi Sudhakara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarangdev, Kalinatha, Simhabhupala
PublisherAdyar Library
Publication Year1959
Total Pages454
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size201 MB
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