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________________ [८] सीखने के लिये नहीं अपितु नृत्य के उस प्रतिशय प्रयोग के लिये है जिसको नत्यरत्नकोश में ही "यूनां शृंगारसर्वस्वम्"" कहा गया है। निःसंदेह महाराणा कुंभा ने नृत्य समेत संपूर्ण नाटयवेद को काम नामक पुरुषार्थ से प्रत्यक्षतः सम्बद्ध मान करके भी 'विषस्य विषमौषधं' के आधार पर नृत्य द्वारा काम-दहन की योग्यता प्रदान करने वाला माना है क्योंकि, जैसा कि गीतरत्नकोश में चक्रों का निरूपण करते हुए लेखक ने बतलाया है । वस्तुतः इन सभी कलानों को अन्तिम परिणति सोम-चक्र अथवा सहस्रदल-कमल के अमृत-पान में ही होती है । इस प्रकार नृत्य प्रादि कलाओं को भारतीय दर्शन से सम्बद्ध करने का सफलतम प्रयास कुंभा के संगीतराज में ही देखा जा सकता है। इस ग्रन्थ के सम्पादन में प्रा० रसिकलाल छोटालाल परीख ने जो परिश्रम किया है वह उनकी विद्वत्तापूर्ण भूमिका से स्पष्ट है। उन्होंने ग्रंथकार के कर्तृत्व प्रादि के विषय में जो ऊहापोह प्रादि की है वह बड़े महत्त्व की है। प्रा० परीख का यह प्रतिष्ठान अन्य कई दृष्टियों से भी उपकृत है। प्रतिष्ठान की ओर से में उनको हार्दिक धन्यवाद अर्पित करता हूँ। आशा है, विद्वान् सम्पादक का यह प्रयत्न सम्बन्धित-शास्त्र में गवेषणा को प्रोत्साहन प्रदान करेगा और उससे लाभ उठाकर शोष-छात्र भारतीय साहित्य की श्रीवृद्धि करेंगे। फतहसिंह माघ-शुक्ला अष्टमी, सं० २०२४ जोधपुर , १. यूनां गारसर्वस्वं मानो मानवतामिदम् । (११)....
SR No.034222
Book TitleNrutyaratna Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkarna Nrupati
PublisherRajasthan Purattvanveshan Mandir
Publication Year1889
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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