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________________ [७: । वित किया हो । यह संभावना कम से कम एकलिम-माहात्म्य के उन ५० श्लोकों के लिए तो हो ही सकतो है जिसका सास-अर्थ कुम्मा द्वारा प्रदत्त तथा कन्हध्यास द्वारा कोतित हुआ है और संभवत: इसी भाव से कन्ह व्यास ने स्वयं को अर्थदास कहा है। सम्बन्धित पंक्तियां निम्नलिखित है-.... . श्रीकुम्भदत्तसर्वार्था गीतगोविन्दसत्पथा । 'पञ्चाशिकायंदासेन कन्हव्यासेन कीतिता ॥ नत्यरत्नकोश प्रस्तु, महाराणा कुम्भा-कृत संगीतराज के एक अंश के रूप में नृत्यरलकोश के प्रस्तुत प्रकाशन की उपादेयता तो नत्यकलाममंज्ञ हो समझ सकेंगे, परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि ग्रन्थकार ने विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों से संकलन-सामग्री जुटाने हुए भी. ग्रन्थ की समग्रता में एक अद्भुत मौलिकता को प्रस्तुत करने का प्रयत्त किया है । भरतमुनि के अनुसार नाटयवेद के ४ अंग क्रमशः पाठ्य, गीत, अभिनय तथा रस होते थे', जिनमें से अभिनय के अन्तर्गत नृत्य को रखा जा सकता है। भरत ने हस्तपाद-समायोग को नृत्य का करण कहा है', और इसके अनेक करणों के आधार पर बने ममतका, अंमहार, कलापक, षण्डक, संघातक का उल्लेख करते हुए १०८ करणों का वर्णन किया है परन्तु नृत्यरत्नकोश के उल्लास १, परीक्षा में संभवत: इन सब का चार प्रकारों में ही वर्गीकरण कर दिया है जिनको क्रमशः आवेष्टित, उद्वेष्टित, प्रावर्तित तथा परिवर्तित नाम दिया गया है। इसी प्रकार कुम्भा की मौलिकता ग्रन्थ के विविध अंगों और उपांगों में देखी जा सकती है । ग्रंथकार के अनुसार (१,१,४.६) 'पाठ्यादि के उपयोगार्थ ही नृत्य का प्रणयन किया गया है, क्योंकि उसके प्रभाव में सभी कुछ निर्जीव-सा प्रतीत होता है । नृत्य के समान दृश्य अथवा श्रव्य अन्य कुछ भी नहीं है, क्योंकि चतुर्वर्ग के फल की प्राप्ति नृत्य से ही कही गई है। नत्य के द्वारा ब्रह्मादि कुछ लोगों ने धर्म, कुछ ने अर्थ, कुछ ने काम तथा कुछ ने मोक्ष की प्राप्ति की है।' परन्तु प्राश्चर्य की बात यह है कि पाठयरत्नकोश' में ब्रह्मचारी के विषय में नृत्य-निषेध को स्वीकार किया गया है। संभवतः यह निषेध नृत्यविद्या को -- १. नाटपशास्त्र, प्रथम अध्याय, श्लोक १७ २. वही ४/३० ३. ४, २, २७ (राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, बोषपुर द्वारा प्रकाशित संस्करण) :
SR No.034222
Book TitleNrutyaratna Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkarna Nrupati
PublisherRajasthan Purattvanveshan Mandir
Publication Year1889
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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