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________________ भाग २ में तथा डॉ.पार. सी. द्विवेदी सम्पादित 'दि पोइटिक लाइट' भाग २ के परिशिष्ट में 'मोतीलाल बनारसीदास दिल्ली' ने १९७० ई. में किया है। [ ३ ] काव्यादर्श-सङ्कत- सोमेश्वर भट्ट ( सन् १२२५ ई० अनुमानित ) ये भरद्वाजवंशीय भट्ट देवक के पुत्र थे। इनकी टीका में किसी प्राचीन टीकाकार का नामोल्लेख नहीं हुआ है। केवल भट्टनायक, मुकुल, भट्टतोत, रुद्रट तथा भामह जैसे स्वतन्त्र ग्रन्थकारों के नाम मिलते हैं। संस्कृत-साहित्य के इतिहास में सोमेश्वर नामक मीमांसक तथा नैयायिक विद्वानों के नाम भी आते हैं किन्तु उनमें से ये कौनसे हैं यह निश्चित नहीं कहा जा सकता। झलकीकरजी ने काव्यप्रकाश के सप्तम उल्लास की ‘एवं देशकालवयोजात्यादीनां' इत्यादि पंक्ति की व्याख्या में 'यथा कान्यकुब्जदेशे उद्धतो वेषो दारुणो व्यवहारः' इत्यादि के आधारपर इन्हें कान्यकुब्ज का निवासी माना है। प्रस्तुत टीका का सम्पादन करते हुए श्री रसिकलाल छोटालाल परीख ने इनकी टीका के उद्धरणों से रुचक के तथा माणिक्यचन्द्र के संकेतों से साम्य एवं पूर्वापरभाव निश्चित किया है। तदनुसार ये रुचक से प्रभावित थे । अत: इनका समय रुचक के बाद का ही है। म. म. काणे ने 'काव्यादर्शसंकेत' की एक पाण्डुलिपि जो कि भाऊ दाजी के संग्रह में है, उसका लेखनकाल वि० सं० १२८३ बताया है और लिखा है कि यह प्रति किसी अन्य प्रति से उतारी गई है। इसके अनुसार इस टीका का समय १२२५ ई० ठहरता है। किन्तु यह सर्वमान्य स्थितिकाल नहीं बन पाया है। इनकी किसी अन्य रचना का भी पता नहीं चला है किन्तु इनके द्वारा ७वें और १०वें उल्लास में 'ममंव' ऐसा सूचित किए हुए दो सूर्यस्तुति सम्बन्धी पद्यों से अनुमान किया जाता है कि ये अच्छे कवि भी थे और इन्होंने सूर्य-सम्बन्धी कोई नाटक अथवा स्तोत्र लिखा होगा। इस टीका का सम्पादन विभिन्न परिशिष्टों के साथ प्रा० रसिकलाल छोटालाल परीख ने १९५६ ई० में किया है तथा 'राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राजस्थान)' दो भागों में प्रकाशित किया है। [ ४ ] बालचित्तानुरउजनी- (नरहरि) सरस्वती तीर्थ ( सन् १२४१-४२ ई० ) .. 'श्रीसरस्वती तीर्थ के पूर्वज आन्ध्रप्रदेश के 'त्रिभूवनगिरि' नामक गांव के निवासी थे। इनका 'वत्स' गोत्र था। इनके कुल में परम्परा से विविध शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन होता रहता था। इनके पिता का नाम 'मल्लिनाथ' (रघुवंश आदि काव्यों के टीकाकार कोलाचल-मल्लिनाथ से भिन्न) तथा माता का नाम 'नागम्मा' था। ये सोमयाजी थे। मल्लिनाथ और नागम्मा के क्रमशः नारायण तथा नरहरि दो पुत्र हुए। नारायण एक अच्छे विद्वान और धनधान्य से समृद्ध थे। द्वितीय पुत्र नरहरि का जन्म सन् १२४२ ई० में हुआ। नरहरि विद्याध्ययन के लिए काशी गए और वहां अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया तथा परिपक्व ज्ञान के फलस्वरूप संसार को असारता जान कर वहीं संन्यास ग्रहण कर लिया। संन्यास आश्रम में इनका नाम 'सरस्वती तीर्थ' हो गया। तभी अापने काव्य-प्रकाश की 'बालचित्तानुरञ्जनी' १. उपलब्ध पाण्डुलिपि के अन्त मेंभरद्वाजकुलोत्तंसभट्टदेवकसूनुना। सोमेश्वरेण रचितः काव्यादर्शः सुमेधसा ॥ सम्पूर्णश्च..."। संवत् १२८३ वर्षे प्राषाढवदि १२ शनी लिखितमिति ॥ ऐसा लिखा है।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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