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________________ . अलङ्कार-शास्त्र की प्राचीन मान्यताओं का शृङ्खला-बद्ध वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत करने के कारण उत्तरवर्ती काव्यशास्त्र के प्राचार्य इसी से प्रेरणा प्राप्त करते रहे हैं यही कारण है कि काव्यप्रकाश को 'अलङ्कार-शास्त्र का प्रस्थान ग्रन्थ' माना गया है। यह सूत्रशैली में लिखित और विषय-बाहुल्य से खचित होने के साथ ही भरत से लेकर भोजराज तक प्राय: १२०० वर्षों में अलङ्कार-शास्त्र के विषय में जिस विशाल साहित्य का निर्माण हया उसके सम्पर्ण सारतत्त्व से परिपूर्ण है। यद्यपि यह अब निश्चित-सा है कि 'काव्यप्रकाश' का निर्माण अकेले मम्मट ने नहीं किया है अपितू, इसमें 'अल्लट' नामक एक अन्य काश्मीरिक प्राचार्य का भी पूर्ण सहयोग रहा है। किन्तु यह सहयोग कितने अंश में है इस विषय में कुछ मतभेद भी हैं । तथापि 'माणिक्यचन्द्र' और 'रुचक' जैसे मम्मट के निकटकालीन टीकाकारों की निम्न पंक्तियों से इस ग्रन्थ का युग्मकर्तृत्व स्पष्ट है । पंक्तियाँ इस प्रकार हैं - १ 'अथ चायं ग्रन्थोऽन्येनारब्धोऽ परेण च समापित इति द्विखण्डोऽपि सङ्घटनावशादखण्डायते। (माणिक्यचन्द्रीय सङ्केत टीका) २ 'एतेन महामतीनां प्रसरणहेतुरेष ग्रन्यो ग्रन्थकृताऽनेन कथमप्यसमाप्तत्वादपरेण च पूरितावशेषत्वाद् द्विखण्डोऽपि ।' (रुचकीय सङ्कत टीका)। इसी प्रसङ्ग में राजानक आनन्द ने अपनी 'काव्यप्रकाश-निदर्शना' टीका में लिखा है कि 'कृतः श्रीमम्मटाचार्यवयः परिकरावधि । प्रन्थः सम्पूरितः शेषं विधायाल्लटसूरिणा ॥' इससे यह स्पष्ट है कि मम्मट ने परिकरालङ्कार तक ग्रन्थ-रचना को और शेष की पूर्ति अल्लट सूरि ने की। किन्तु कुछ अन्य प्राचार्य दोनों (मम्मट' और अल्लट) की सम्मिलित कृति भी मानते हैं। 'काव्य प्रकाश' के तीन भाग क्रमशः १-कारिका, २-वृत्ति और ३-उदाहरण हैं । इनमें उदाहरण तो विभिन्न ग्रन्थों से संगृहीत हैं ही, किन्तु कारिका और वृत्ति इन दोनों के बारे में भी दो मत प्रचलित हैं। प्रथम मत है किकारिकाएँ भरत मुनि की हैं और वृत्ति मम्मट की । जब कि द्वितीय मत है कि इन दोनों के रचयिता मम्मट ही हैं। इन में पहला मत विद्याभूषण और महेश्वर नामक टीकाकारों का है और दूसरा मत जयराम नामक टीकाकार का है। प्राचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्त-शिरोमणि ने अपनी काव्यप्रकाश की हिन्दी टीका की भूमिका में अनेक दृष्टि से विचार स्पष्ट करके जयराम के मत को ही उचित माना है जो कि वास्तविक प्रतीत होता है। काव्यप्रकाश का महत्त्व कितना अधिक है और क्यों ? इस बात को जानने के लिए निम्नलिखित बातें साररूप में ज्ञातव्य हैं १. 'काव्य प्रकाश' को रचना के कुछ वर्षों के पश्चात् ही इस पर टोका-निर्माण को परम्परा का आविर्भाव हुआ और वह आज भी प्रचलित है। २. इस पर साहित्य के अतिरिक्त अन्य सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा भी निरन्तर टोकानों की रचना होती रही है। ३. इस में १४२ कारिका (सूत्र), वृत्ति और ६२० उदाहरणों द्वारा संक्षेप में ही सर्वाङ्गीण विषयों का विवेचन किया गया है।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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