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________________ ५७ प्राप्ति के अतिरिक्त 'राजानक" कुल में उत्पत्ति प्रकट होती है, जो प्रायः सर्वमान्य है । किन्तु भीमसेन द्वारा जैयट की पत्नी के गर्भ से सम्ब का जन्म वाराणसी में अध्ययन और कंपट तथा चौवट की लघुभ्रातृता शिष्यत्व प्रावि बातें विभिन्न प्रमाणों से संशय-पूर्ण सिद्ध हुई हैं। टकारान्त नाम से इनका काश्मीरजन्मा होना अवश्य ही मान्य है। यद्यपि मम्मट ने कहीं अपने देश काल का सङकेत नहीं दिया है किन्तु इनके पूर्वापरवर्ती 'भोजदेव' (सन् १०२२ ) तथा 'माणिक्यचन्द्र' (सन् १९६०) के आधार पर ईसा की ग्यारहवीं शती को इनका स्थितिकाल तथा काव्यप्रकाश का रचनाकाल माना है । मूल ग्रन्थ 'काव्यप्रकाश' और 'शब्द-व्यापार- विचार' के परिशीलन से सहज स्पष्ट हो जाता है कि मम्मट अनेक शास्त्रों के मर्मज्ञ थे । पातजल-महाभाष्य वाक्यपदीय, शावर भाष्य तथा भट्ट कुमारित, मुकुल भट्ट प्रादि के व्याकरण, मीमांसा और तर्कसम्मत मतों का अपने ग्रन्थ में समायोजन-समालोचन एवं साहित्यशास्त्रीय पूर्ववर्ती भरत, भामह, दण्डी प्रभूति प्राचार्यों के विचारों का परिशीलन-पर्यालोचन इस बात का साक्षी है कि इनकी बहुशता वस्तुतः आश्चर्यकारक थी। इतना होते हुए भी ये मुख्यतः वैयाकरण थे, यह बात काव्य-प्रकाश के अनेक उद्धरणों से स्पष्ट है। ' मम्मट के इसी सर्वङ्कष पाण्डित्य को ध्यान में रखकर उन्हें वाग्देवतार, ध्वनिप्रस्थापनाचार्य, ध्वनि स्था पनपरमाचार्य, ग्रादि प्रत्यन्त आदरणीय पदावलियों से सम्बोधित किया गया है । काव्यप्रकाश और उसका महत्व । अलङ्कारशास्त्र के ग्रन्थ प्रोताओं की गुदी परम्परा में प्राचार्य मम्मट तथा उनकी अमर रचना 'काव्य'प्रकाश' का नाम बहुत ही आदरणीय बन गया है । काव्यप्रकाश की रचना से पूर्व विभिन्न आचार्य इन्हीं विषयों को अनेक दृष्टियों से विवेचित कर रहे थे । मम्मट का युग इस दृष्टि से नवीन चेतना-युग के रूप में विकसित होना चाहता या महाकवियों की काव्यसृष्टि के समीक्षण के साथ ही अनुभूति की गहराई व्यक्त करने के लिये "रस की अभि व्यक्ति, उतिपय वकोक्ति, भङ्गीमखिति ध्वनि और गुणीभूतव्यङ्ग तथा रसध्यनि" जैसी नवीन चेतनाओं द्वारा 'काव्य-दर्शन' का स्वरूप उपस्थित किया जा रहा था काश्मीर के दार्शनिक और साहित्यिक वातावरण में पलकर मेधावी मम्मट ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से उपर्युक्त सभी तत्वों को प्रात्मसाद करते हुए एक ऐसी समन्वयात्मक कृति की श्रावश्यकता का अनुभव किया और उसके परिणाम स्वरूप 'काव्यप्रकाश' का निर्माण हुप्रा । ध्वनिवाद के कुछ समर्थक प्राचीन अलङ्कारशास्त्र को ध्वनिवाद की दृष्टि से नवीन रूप देने की जो अपेक्षा रखते थे उसकी पूर्ति ध्वनिवादी अलङ्कारशास्त्ररूप 'काव्यप्रकाश' की रचना से मम्मट ने की और साथ ही साथ इसमें काव्यसमीक्षा के सभी आवश्यक सिद्धान्तों का भी प्रामाणिक सङ्कलन प्रस्तुत किया। डॉ. सत्यव्रतसिंह ने ठीक ही कहा है कि "मम्मट के हाथ से 'काव्यप्रकाश' काव्यालोचना के 'विज्ञान' के रूप में निकलता है किन्तु मम्मट के हाथ में 'काव्यप्रकाश' काव्यालोचना की 'कला' है काव्यप्रकाश का लेखक पहने पक्ति, व्युत्पत्ति पर प्रभ्याससम्पन्न सहृदय है धौर उसके बाद काव्यालोचक है ।" १. डॉ० सत्यव्रत सिंह मम्मट का वाराणसी में अध्ययन भी समीचीन ही मानते हैं २. 'बि' शब्द का दोष प्रकरण में समावेश देखकर विश्वनाथ ने 'काव्यप्रकाश किया है। ३. उद्धरणों के लिए देखें झलकीकर की भूमिका पृ० ८०१ । (वहीं भूमिका पृ० ६७ ) में काश्मीर का सङ्केत
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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