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________________ भी मिली थी किन्तु यह पाण्डुलिपि किसी विशिष्ट परिचय को प्राप्त नहीं होने से मैं इसका परिचय नहीं दे रहा हूँ। कुछ समय पश्चात् उपाध्याय भगवन्त के स्वहस्त से लिखित पाण्डुलिपि जो प्राप्त हुई तथा जो आज 'श्री लालभाई दलपत भाई विद्यामन्दिर' में विद्यमान है उसी प्रति की फोटोस्टेट कॉपी मेरे पास है, जिसमें प्रारम्भ के १ से ६ तक के पत्र नहीं है और बीच में भी कोई-कोई पत्र नहीं है। ये पत्र एक समान अक्षरों से नहीं लिखे गये हैं । अक्षर छोटे-बड़े हैं और यही कारण है कि प्रतिपृष्ठ में पंक्तियों की संख्या में भी एक प्रमुख अर्थात् १६ से २२ पंक्ति का अन्तर देखने में आता है। इसीलिये प्रतिपङ्क्ति के अक्षरों की संख्या में भी अन्तर रहे यह स्वाभाविक है । यह अन्तर ५२ से ६२ अक्षरों के बीच का है । प्रति का आकार २५/११ सें० मीटर है। अभिवादन ___ अन्त में इस अवसर पर पूज्य गुरुदेव, सहायक, साधु, साध्वी, मेरे साथ कार्य करने वाले, संस्था के ट्रस्टी, मन्त्रीगण, नामी-अनामी सहायक तथा दानदाताओं आदि का मैं अभिवादन करता हूं। प्रकाशन-सम्बन्धी भावी चित्र उपाध्यायजी के अनेक ग्रन्थों का जो उत्तरदायित्व मेरे सिर पर था वह महाप्रभावक श्रीपार्श्वनाथ प्रभु तथा स्व० उपाध्यायजी महाराज, भगवती श्री पद्मावतीजी और श्री सरस्वतीजी एवं पूज्य गुरुदेवों की सत्कृपा से मेरे द्वारा अशक्य कोटि का ऐसा कार्य होते हुए भी शक्य होकर अब किनारे पहुंचने पाया है तथा मझे लगता है कि उनकी प्रसिद्ध छोटी-बड़ी समस्त कृतियों का प्रकाशन वि० सं० २०३३ में पर्ण हो जाएगा और वर्षों से मेरे सिर का भार इतने अंशों में हलका होने से परम प्रसन्नता और एक कर्तव्य के निर्वाह का श्वासोच्छ्वास लेने का भाग्यशाली बनूंगा। द्रुतविलम्बित छन्द की गति से चल रहे इस कार्य के प्रसंग में जनसंघ तथा मेरे सहयोगी कार्यकर्ता आदि का मैं पर्याप्त अपराधी बन गया था किन्तु अब इस अपराध से मुक्ति पाने के दिन निकट आ रहे हैं ऐसा लगता है। उसके पश्चात् सद्भाग्य होगा तो 'उपाध्यायजी, एक अध्ययन' (जीवन और कार्य) पर विस्तार से लिखना चाहता हूँ। तथा उपाध्यायजी की लगभग सभी गुजराती कृतियों वाला 'गुर्जरसाहित्यसंग्रह' उनके उस समय की भाषा में छपवाने तथा पुनर्मुद्रण की अपेक्षावाली कृतियों को छपाने और अनुवाद कराने की ओर लक्ष्य देने की धारणा बनाई है। यह धारणा कितनी फलीभूत होगी यह तो ज्ञानी जानें। जैनं जयति शासनम् । भाषाढ़ कृष्ण दशमी दि. २३/७/७६ बालकेश्वर, बम्बई
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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