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________________ पोदकीरुते संधिविग्रहजयादिप्रकरणम् । (१७७ ) स्थिरे विहंगद्वितये स्थिरं स्याधुदं भवेत्तत्र वियुज्यमाने ॥ भवेद्धनिर्वोभयतो द्वयस्य संधिर्भवेत्पार्थिवयोस्तदानीम् ॥ ॥२४३॥ योद्धव्यमद्योति विचिंत्यमाने यात्राविरुद्धः शकुनः शुभाय ॥ दिनांतरे स्यात्समरो यदा भवेत्क्षेमंकरो यात्रिक एव नान्यः॥२४४ ॥अंगानि यानि स्पृशति प्रयत्नाद्वामांघ्रिणा पांथसमूहमाता ॥ सुशिक्षितस्यापि भटस्य तेषु द्वंद्वप्रयुद्धे नियतं क्षतानि ॥२४५ ॥ अभ्यर्च्य मंत्रेण विहंगयुग्मं विन्यस्य भूपद्धयनामधेयम् ॥ संधिविरोधः समरो जयो वा भंगोऽथवेत्यादि विकल्प्य पृच्छेत् ॥ २४६॥ ॥टीका ॥ तारा प्रतिलोमगा चेत्स्यात्तदा वसुधाधिपस्य जयश्रीन स्यात् ॥ २४२ ॥ स्थिर इति ॥ स्थिरे विहंगद्वितये स्थिरं युद्धं भवेत् वियुज्यमाने तत्र तदोभयतो द्वयस्य ध्वनिर्भवेत्तदानीं पार्थिवयोः संधिर्भवेत् ॥ २४३ ॥ योद्धव्यमिति ॥ योद्धव्यं मया. घेति विचित्यमाने यात्राविरुद्धः शकुनः शुभाय भवति । यदा तु दिनांतरे समरः स्यात्तदा यात्रिक एव क्षेमकरः नान्यः ॥ २४४ ॥ अंगानीति । वामांघ्रिणा पां. थसमूहमाता यानि अंगानि प्रयत्नात् स्पृशति सुशिक्षितस्यापि भटस्य द्वंद्वयुद्धे तेषु नियतं क्षतानि स्युः॥२४५॥ अभ्यच्येति ॥ पूर्वोक्त विहंगयुग्मम् अभ्यर्च्य भूपद्रयनामधेयं विन्यस्य च संधिःविरोधासमरः जयः भंगः इति विकल्प्य पृच्छेत् ॥२४६॥ ॥ भाषा॥ करने वालेकू नाशकर जो ताराहोयकरके प्रतिलोमगाहोय तो राजाके जयश्री होय ॥ २४२ ॥ ॥ स्थिर इति ॥ दोनोंपक्षी स्थिर होय.तो युद्ध भी स्थिर होय और दोनों वियोगकरे होय तो भी युद्धकरै. और दोनों एक होय मिलजाँय अथवा दोनोनको माऊंसूं शब्द होय तोभी राजानको मिलापहोय ॥ २४३ ॥ योद्धव्यमिति ॥ मोकू अब युद्ध करनोहै ऐसी मनमें चिंतमनकरत यात्राते विरुद्ध शकुन होयं तो शुभके अर्थ होय और जो बहुत दिनमें संग्राम होय तो यात्राके शकुन हैं सोई कल्याण करबेवारे हैं और नहीं हैं ॥२४४ ॥ ॥ अंगानीति ॥ पोदकी बाय पाँवकरके जो अंगकू स्पर्श करे तो बहुत सुंदर सीखेहुये योद्धानरनको इंद्वयुद्धमें नाश होय ॥ २४५ ॥ अभ्यति ॥ पहले कहेपक्षीको युग्म ताको पूजन करके दोनों राजानको नाम धरकरके फिर संधिविरोध संग्राम जय भंग इनळू Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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