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________________ ( ४१ ) वह प्रधाकर्मी होता है । क्योंकि प्रतिमानों में जीव होता ही नहीं है । प्रश्न ३२:- महद्धिक देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके गमन ग्रागमन प्रश्न उत्तर उन्मेष ( ग्राँख खोलना ) निमेष ( आँख बन्द करना ) संकोच, विस्तार, खड़ा रहना, विकुर्व अर्थात् वैक्रिय रूप करना, परिचायरण ( मैथुनादि ) क्रिया करते हैं प्रथवा महद्धिक होने से बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये बिना ही गमनागमनादि उपर्युक्त सभी क्रियाएं करते हैं ? उत्तर --- देव प्रादि समस्त संसारी जीव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके ही गमन आगमन आदि क्रियाओं को करने में समर्थ होते हैं । बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये बिना उनके लिये किसी भी कार्य का करना नितान्त असम्भव है। श्री भगवती सूत्र के १६ वें शनक के चौथे उद्देशक में कहा हैं कि - 4 यथा - "देवेां भंते महिडिए जाव महे सक्खे बाहिरए पोगले परियादित्ता पभू श्रागमित्त हंता प्रभू देवेणं भंते महिइदिए एवं एतेणं अभिलावेगं गमित्तए २ एवं भासितए वा बागरेचए वा ३ मिसावित्तए वा निमिसावित्त वा ४ उंटावत्तए वा पसारेतर वा ५ ठाणं वासेज्ज वा निसीहियं वा चेयत्तए ६ एवं विउन्चित्तए ७ एवं परियारेत्तर = जाव हंता पभू ।। " Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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