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________________ -- "हे भगवान् महद्धिक तथा महासुखी देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके ही क्या गमन आगमन आदि क्रियाओं के करने में समर्थ होते हैं ? हाँ, बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करने के पश्चात् ही मद्धिक तथा महासुखी देव जाने, पाने, बोलने, उत्तर देने आदि उपयुक्त समस्त क्रियाओं के करने में समर्थ हो सकते हैं।" अतः यह सिद्ध है कि समस्त संसारी जीव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये बिना कोई भी क्रिया नहीं कर सकते ! प्रश्न ३३:-परमाणु पुद्गल नित्य हैं या अनित्य ? इसी प्रकार दूसरे परमाणु में रहे हुए वर्ग, रस, गन्ध आदि पर्याय क्या सदा स्वभाव से हो रहते हैं या कभी उनमें विपर्यय भाव (परिवर्तन ) भी होता रहता है और एक परमाणु में कितने पर्याय होते हैं ? उत्तरः---द्रव्य से परमाणु पुद्गल नित्य एवं पर्याय से अनित्य हैं। इसीलिये परमाणु में रहे हुए वर्णादिपर्याय भी कुछ तो स्वयमेव नष्ट हो जाते हैं और कुछ नवीन रूप में उत्पन्न हो जाते हैं। इस सम्बन्ध में श्री भगवती सूत्र में कहा है :"परमाणु पुग्गलेणं मंते ! सापए असामए वा गोयमासिए सासए सिन असासए से केणढणं भंते वुच्चति गोयमा, दबट्टयाए सासए पज्जवट्ठयाए असास ए इत्यादि ।" Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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