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________________ ( १४१ ) किराया लिया हो और वह उसके साथ गमन करे तो परदारगमन के दोष की सम्भावना होती है, क्योंकि कथंचित् उसमें परस्त्रोत्व है ; अत: व्रतभंग एवं वेश्या होने से अभंगत्व भी है । इससे भंगाऽभंग रूप अतिचार लगता है । यह दूसरा अतिचार है । यह दूसरा मत है। दूसरे पुनः इस प्रकार कहते हैं :-- परदार वज्जिको पंच हुंति तिन्निड सदारसंतुट्ठ। इत्थीइ तिन्नि पंच व भंग विगप्पेहि अड्यारा ॥ -- थोड़े समय के लिये दूसरे के द्वारा किराया देकर रखी गई वेश्या के साथ गमन करने वाले परदार त्यागी का व्रत भंग होता है, क्योंकि उसमें कथंचित् परदारत्व है, परन्तु लोक में वह परस्त्री के रूप में प्रसिद्ध नहीं है, इसलिये व्रतभंग नहीं भी होता है। इस प्रकार यह भंगाभंगरूप अतिचार है । तथा अपरिगृहीता, अनाथ या कुलांगना के साथ परदारत्यागी गमन करे तो अतिचार लगता है, परन्तु उसको कल्पना से तो दूसरे भर्ता का अभाव होने से वह परस्त्रो नहीं है, इसलिये व्रत का अभंग है एवं लोक में तो वह परस्त्री के रूप में प्रसिद्ध है, इससे व्रत भंग है । अतः पूर्ववत् यह मंगाभंगरूप अतिचार है। शेष तीन अतिचार तो दोनों के होते हैं , स्त्रियों में तो स्वपुरुषसन्तोष एवं परपुरुष के त्याग में कोई भेद नहीं होता; क्योंकि उसके लिये तो अपने पुरुष के अतिरिक्त सभी परपुरुष ही हैं । स्वदार सन्तोषी के समान स्त्रियों के भी स्वपुरुष विषयक परविवाह आदि तीन अतिचार होते हैं अथवा पांच अतिचार भी। Aho! Shrutgyanam
SR No.034210
Book TitlePrashnottar Sarddha Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyanvijay, Vichakshanashreeji
PublisherPunya Suvarna Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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