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________________ महाकोसलकी कतिपय हिन्दू-मूर्तियाँ ३९७ Horizontal स्तम्भके ऊपर अर्थात् प्रभावलीके उभय ओर इतनी प्रतिमाएँ हैं १-मंगलमुख २—दो चैवरधारी पार्श्वद ३--गगनविहारी दम्पति । गगनविहारी दम्पति हाथमें दो पुष्पमाला लिये हुए इस प्रकार उत्कोर्णित हैं मानो गगनसे ही वे भगवान् विष्णुको पहुँचाने जा रहे हैं । __ परिकर के पर्यवेक्षणके उपरान्त मैं हिन्दू धर्म मान्य विष्णुके दशावतारों का उल्लेख प्रधान प्रतिमाकी प्रभावलीके दायीं ओरसे आरम्भ करूँगा। सर्वप्रथम मत्स्यावतार है, बाई ओर उसी क्रममें कच्छपावतार, मुखमें माला लिए उत्कीर्णित है। तीसरी प्रतिमा दाईं ओर वराहावतार की है। चौथी बाई ओर नृसिंहावतार । पाँचवीं दाई ओर वामन । छठी बाई परशुरामकी सातर्वी प्रतिमा विष्णुमूर्ति के दाईं ओरके स्तम्भके ऊपर रामावतारकी । है। उसी स्तम्भपर आठवीं बलरामकी दाईं ओर नवीं प्रधान पार्श्वद दम्पतिके नीचे बुद्धावतारकी होनी चाहिए, इसलिए कि इस मूर्तिका मस्तक खंडित हो गया है। केवल अधोभाग एवं वस्त्र ही शेष हैं तथा दायें हाथकी अभयमुद्राको सामान्यतः बौद्धधर्मका प्रतीक मानकर ही बौद्धावतारकी कल्पना की है। जिस क्रममें अन्य अवतारोंकी रचना इस मूर्तिमें की गई है, उससे युगकी अनुकूलताको ध्यानमें रखते हुए भी; इस खंडित प्रतिमाको 'बुद्ध' मानना अनुचित नहीं। अस्तु, बाईं ओर पुरुष पार्श्वदके नीचे कल्कि अवतारकी प्रतिमा है, जो अश्वारोही है। इस प्रकार दशावतारोंका सफल अंकन किया गया है। इस तरह वैष्णव धर्मकी इस प्रतिमामें साँची-स्तूपके बौद्धशिल्पके आधारपर ही रचनाकाल निर्धारित करना होगा। कहा जा चुका है, इस प्रकारके स्तम्भोंका व्यवहार महाकोसलके १२ वीं शतीतकके अवशेषोंमें हुआ है । यह अन्तिम सीमा है। पूर्व सीमा गुप्तकाल तक जाती है और प्रत्येक शताब्दीके अवशेषोंमें आंशिक परिवर्तनके साथ परिलक्षित होती है । दशावतारी विष्णुकी अन्य प्रतिमाएँ भी विभिन्न मुद्राओंमें मिलती Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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