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________________ ३६६ खण्डहरोंका वैभव श्रृंगार सचमुच वैभवपूर्ण है। पत्नीके पीछे जो पुरुष पार्श्वद हैं, उनके बायें हाथों में फूल भी रखे हुए हैं। पुरुष भी सामान्य शृंगारसे सुसज्जित होकर अपनी पत्नीके पीछे खड़े हुए हैं। स्त्रीकी तत्कालीन संभ्रान्तिका परिचय इन पार्श्वदोंकी विशिष्ट पोजीशनके ज़रिये हमें मिलता ही है । उस युगमें स्त्री अवश्य ही उस असम्माननीय स्थितिमें नहीं थी, धर्म कार्यमें पत्नीका प्राधान्य अथवा समान स्थान रामायण युगकी विशेष दशा है। जिसका ह्रास बादमें नारी-परतंत्रताकी बेड़ियोंके घृणित रूपमें हुश्रा। वैष्णव धर्ममें स्त्रियोंका सम्माननीय स्थान नहीं था। यह प्रभाव प्रमादपूर्ण जान पड़ता है। ___इन दम्पति युग्मोंके ऊपर अर्थात् विष्णु वक्षस्थलके चारों ओर साँचीके द्वारके अनुरूप डिज़ाइनदार स्तंभ बने हुए हैं। दो स्तंभों ( Vertical Pillars ) के ऊपर ( across ) तीसरा ( Horizontal ) स्तंभ साँचीके स्तूपकी अपनी विशेषता है। ध्यान देनेकी बात यह है कि ऐसे स्तंभ बौद्धधर्मकी स्थापत्य कलामें ही प्रथमतः व्यवहृत हुए हैं, किन्तु महाकोसल एवं बुन्देलखण्डमें जो उत्तरकालीन जैन और वैदिक कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं, उनमें साँचीका यह डिज़ाइन सामान्य रूपसे प्रयुक्त हुआ है। सिरपुरमें जो धातुकी मूर्तियाँ उपलब्ध हुई है, उनमें भी यह स्तम्भ रचना कमसे कम १२वीं शतीतक अवश्य व्यवहृत होती आई है। हसके उपरान्त साँचीमें प्रयुक्त जो बारीक खुदाई और पच्चीकारी इन खम्भोंमें की जाती थी, वह बन्द हो गई होगी और उनके स्थानपर केवल तीन खम्भ मात्र शेष रहे होंगे । दोनों स्तम्भोंके बाहर भागोंमें हस्तिशुण्डा एवं तदुपरि सिंहाकृति बनी हुई है। आगेके दोनों पाँव ऊपर हवामें सिंहाकृति उठाये हुए हैं, और उसके ऊपर सिंहके मुखमें लगाम थामे हुए एक-एक आरोही-सवार है। हाथीके गण्डस्थल और उसके शुण्डाकी सिकुड़नें देखनेपर हाथीकी विशालता और आभिजात्यका आभास मिलता है। Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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