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________________ खण्डहरोंका वैभव हैं। कोई गरुड़पर बैठी हुई, कोई अकेले विष्णु मात्रकी। मेरे संग्रहमें ३ विभिन्न मुद्रावाली मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। इसी आकार-प्रकारकी एक विष्णुमूर्ति कामढ़ा-दुर्गके द्वारपर लगी है। गढ़ा और त्रिपुरीमें ध्यानी विष्णुकी अतीव सुन्दर प्रतिमाएँ उपलब्ध हुई हैं। ऐसी मूर्तियों के साथ मूर्तिकलामें अनभिज्ञों द्वारा अन्याय भी हुआ है। इसका उदाहरण मैं इसी ग्रन्थमें अन्यत्र दे चुका हूँ। ___महाकोसलमें चतुर्भुज विष्णुकी एक ऐसी विशिष्ट शैलीकी मूर्ति मेरे संग्रहमें सुरक्षित है, वैसी मैंने अन्यत्र नहीं देखी। खड़ी और बैठी विष्णु मूर्तियाँ तो सर्वत्र उपलब्ध होती हैं-सपरिकर भी। इसमें विशिष्टता यह है कि इसमें शिलाके दोनों ओर ललित प्रभावली युक्त गन्धर्व दम्पतियुगल गगनविचरण कर रहे हैं हाथमें अतीव सुन्दर स्वाभाविक दण्डयुक्त कमल थामे हुए हैं। दण्डाकृति ८" से कम न होगी। ऊपरके भागमें विकसित कमलपर भगवान् विष्णु विराजमान हैं। प्रभावलीके विशिष्ट अंकनसे विष्णु गौण हैं और गन्धर्व प्रधान है। शिव--महाकोसलमें शैवसंस्कृतिकी जड़ शताब्दियोंसे जमी हुई है । यहाँके अधिकतर शासकोंका कौलिकधर्म भी शैव ही रहा है । वाकाटक शैव थे। जैसे सोमवंशी पांडव प्रथम बौद्ध थे पर श्रीपुर-सिरपुर आकर वे भी शैवमतानुयायी हो गये। कलचुरि तो परम शैव थे ही। त्रिपुरी इनकी राजधानी थी। पद्मपुराण (अ० ७) में कहा गया है कि महादेवने यहाँपर त्रिपुरासुरका वध किया था । कीर्तिवीर्य सहस्रार्जुन शैवोपासक था। पौराणिक साहित्यसे भी यही ज्ञात होता है कि यहाँ बहुत कालसे शैवोंका प्राबल्य रहा है। प्रान्तमें प्राचीन स्थापत्योंके जितने भी खंडहर हैं, उनमें शैव ही अधिक हैं । मूर्तिकलामें शैव संस्कृतिका स्पष्ट प्रतिविम्ब है । सुन्दरसे सुन्दर और विविध भावपूर्ण प्रतिमाएँ उमा-महादेवकी ही मिलती हैं । उनकी आयु कलचुरियोंकी आयुसे ऊपर नहीं जाती। शैव मूर्तियोंके अतिरिक्त शिवचरित्रके पट्ट भी इस ओर उपलब्ध होते हैं। Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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