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________________ विन्ध्यभूमिकी जैन- मूर्तियाँ २६५ यहाँ के एक शैव मन्दिर में खंडित चतुर्विंशतिकापट्ट तथा फुटकर जैन मूर्तियाँ हैं। नालेपर भी एक दीवाल में कई देवताओंके साथ जैन प्रतिमाएँ हैं। नालेके ऊपर एक टीला है, उसपर विशेषतः शैव संस्कृतिके अवशेषों में जैन मन्दिरोंके तोरण द्वार स्तम्भ एवं कृतियाँ सुरक्षित हैं। कुछेक जैन प्रतिमाएँ, अन्य स्थानोंके समान, यहाँपर खैरमाईके रूपमें पूजी जाती हैं । , यहाँपर सबसे अधिक और आकर्षक संग्रह है सती- स्मारकोंका । एक स्थान इसलिए स्वतन्त्र ही बना हुआ है । यहाँ सैकड़ों सतीके चौतरे हैं । कुछेकपर लेख भी हैं। बार-बार यहाँ से सामग्री ढोनेके बाद अब ऐतिहासिक एवं शिल्पकलाकी कुछ भी मूल्य रखनेवाली सामग्री शेष नहीं रही । ट (५) मैहर शारदामाईके कारण मैहर विन्ध्य प्रदेश में काफ़ी ख्याति प्राप्त कर चुका है । प्रतिदिन कई यात्री यात्रार्थ आते हैं। इनके संबंध में यहाँपर कई प्रकारकी किंवदन्तियाँ भी प्रचलित हैं । इसपर विशेष जाननेके लिए “विन्ध्यभूमिके दो कलातीर्थ" नामक मेरा निबन्ध देखना चाहिए | स्थानीय राजमहल के पीछे एक देवीका मन्दिर है । इसमें तीन खण्डित जैन-मूर्तियाँ पड़ी हुई हैं । वहाँपर एक स्त्रीसे पूछनेपर ज्ञात हुआ कि यह हमारी देवीजीके रक्षक हैं, इसलिए इन्हें द्वारपर ही रहने दिया गया है । परम वीतराग परमात्माकी प्रतिमाओं का उपयोग, अज्ञानवश किस प्रकार किया जाता है, इसका यह एक उदाहरण है । इस मन्दिर के दो फलांग पीछे जानेपर अत्यन्त सुन्दर कलापूर्ण और सर्वथा अखण्डित शैव मन्दिर आता है । इस मन्दिर के चबूतरेके पास ही खड्गासनस्थ जिन-मूर्तियाँ हैं । इस मंदिरसे तीन फर्लांग और चलनेपर एक नाला आता है, उसपर जैनमन्दिरका चौखट और कलश, स्वस्तिक और नन्द्यावर्त्त अंकित स्तम्भ दृष्टिगोचर होते हैं। इन अवशेषोंसे ज्ञात होता है कि इसके निकट कहींपर जिन Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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