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________________ २६६ खण्डहरोंका वैभव मन्दिर रहा होगा । वर्ना स्तम्भ और चौखटकी प्राप्ति यहाँ क्योंकर होती ? मैहर से कटनीकी ओर जो मार्ग जाता है उसपर 'पौंडी' ग्राम पड़ता है । इसमें अतीव सुन्दर जैन- मूर्तियाँ प्राप्त हुई । इसकी संख्या १४ से कम न होगी, और स्रण्डित प्रतिमाओंका तो ढेर लगा हुआ है । प्रायः अखण्डित मूर्तियाँ कलाकी दृष्टिसे सर्वांग सुन्दर हैं । सौभाग्यसे एकपर ११५७ का लेख भी उपलब्ध होता है, यह मूर्ति सपरिकर है । इस लेखका बहुत-सा भाग तो शस्त्र पनारनेवालोंने समाप्त ही कर डाला है, जो शेष रह गया है, वह मूर्तियों के समय निर्धारण के लिए उपयोगी है । एक ही इस लेखसे इस शैली की अनेकों मूर्तियोंका समय निश्चित हो जायगा ! मूर्तियोंकी रक्षा अत्यावश्यक है । जनताका ध्यान भी इस ओर नहीं के बराबर है | उपसंहार उपर्युक्त पंक्तियों में विन्ध्यभूभागके केवल उन्हीं जैनावशेषोंका उल्लेख किया गया है, जिनको मैंने स्वयं देखा है। अभी अन्दर के भागमें अनेक ऐसे नगर हैं, जहाँके खंडहरों में जैन शिल्पकलाकी काफ़ी सामग्री अस्तव्यस्त पड़ी हुई है । मुझे सूचना मिली थी कि पन्ना, अजयगढ़, खजुराहो, देवगढ़, कालिंजर और छतरपुर के पासके खंडहर भी इस दृष्टि से विशेष रूपसे प्रेक्षणीय हैं । इन स्थानोंपर जैन दृष्टिसे आजतक समुचित अध्ययन नहीं हुआ, बल्कि स्पष्ट कहा जाय तो संपूर्ण पुरातत्त्वकी दृष्टिसे अभी इस भूभागको कम लोगोंने छुआ है। तलस्पर्शी अध्ययनकी तो बात ही अलग है। जैन एवं अजैन विद्वानोंके सदुप्रयत्नोंसे कहीं-कहीं सुरक्षाकी व्यवस्था की गई है, पर सापेक्षतः नहींके समान है । विन्ध्य प्रदेश में पाई जानेवाली जैन पुरातत्त्वकी सामग्रीमें अन्य प्रान्तोंकी अपेक्षा वैविध्य है, यहाँपर जैन प्रतिमा एवं मंदिरों के साथ-साथ जैन धर्मके Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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