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________________ २६४ खण्डहरोंका वैमव यहाँपर पुरातत्त्व विभाग द्वारा खुदाई कराई जाय तो और भी पुरातनावशेष निकलनेकी पूर्ण संभावना है । जैन पुरातत्त्वके प्रधान केन्द्र के रूपमें जसो कबतक विख्यात रहा, यह तो निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता । परन्तु अवशेषोंसे इतना तो कहा ही जा सकता है कि १५-१६ शतीतक तो रहा ही होगा । कारण कि १२ शतीसे लगाकर १६ शतीतकके जैनावशेष उपलब्ध होते हैं । यहाँकी अधिकतर सामग्री "एन्श्यन्ट मोन्युमेन्ट प्रिज़र्वेशन एक्ट" द्वारा अधिकृत नहीं की गई है, यदि कला प्रेमी इनकी समुचित व्यवस्था करें तो आज भी अवशिष्ट सामग्री चिरकालतक सुरक्षित रह सकती है । वर्ना अवशिष्ट अवशेषोंसे भी हाथ धोना पड़ेगा। कारण कि जिसे आवश्यकता होती है, वह उनका उपयोग आज भी कर लेता है । जसोसे १५ मीलपर 'लखुरबाग़' नामक स्थान पहाड़ोंकी गोदमें है । जहाँपर गुप्तकालीन अवशेष पर्याप्त संख्या में मौजूद हैं । दुरेहामें भी जैन मंदिरोंके अवशेष हैं । नागौदके लाल साहबसे मुझे ज्ञात हुआ था कि लखुरबाग़ और नचनाके जंगलों में बड़ी विशाल जैन प्रतिमाएँ काफ़ी संख्यामें पड़ी हुई हैं । वहाँपर जैन मन्दिरों के अवशेष भी मिलते हैं । (४) उच्चकल्प ( उचहरा) प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहासमें इसका स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहा है । एक समय यह राजधानीके रूपमें भी था । वाकाटक और गुप्तकालीन शिलालेखोंमें इस नगरका उल्लेख "उच्चकल्प” नामसे हुआ है । संन्यासी ही यहाँ के शासक थे। नगरमें परिभ्रमण करनेपर प्राचीनताके प्रमाण स्वरूप अनेकों अवशेष दृष्टिगोचर होते हैं । यहाँ के काफ़ी अवशेष ( कलकत्ताके ) इन्डियनम्यूज़ियममें हैं। शेष अवशेषोंको जनताने स्थान-स्थानपर एकत्रकर, सिन्दूरसे पोतकर खैरमाई या खैरदइयाके स्थान बना रखे हैं। अब यहाँसे अनावश्यक या आवश्यक एक कंकड़ भी हटाना संभव नहीं । जहाँपर जैन अवशेष भी काफ़ी तादादमें मिलते हैं, वे मध्यकालके हैं। Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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