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________________ auseat वैभव प्रसंगवश एक बात का उल्लेख अवश्य करूँगा कि श्वेताम्बर समाजने अपनी मूर्तियों के लेख लेकर कई संग्रहों में प्रकट किये, परन्तु दिगम्बर समाज अभीतक सुसुप्तावस्था में ही है। आजके युगमें जैन इतिहासके इस महत्त्वपूर्ण साधन की ओर उपेक्षा भाव रखना उचित नहीं । १३४ अध्ययन किया है । मैं और सामाजिक लोक चरणपादुका और यंत्रों के लेख सामान्य ही होते हैं । जैनलेखोसे अपरिचित विद्वान् अक्सर यह शंका उठाते हैं कि, उनकी उपयोगिता जैनसमाज तक ही सीमित है, परन्तु मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ । मैंने पश्चिम भारतके कुछ लेखोंका विशेष दृष्टिकोण से इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि उनमें राजनैतिक जीवन की बहुमूल्य सामग्री है । राजा महाराजाओंके नामोंसे ही तो उनकी सीमाका समुचित ज्ञान होता है। किसका अस्तित्व कबतक था, कहाँतक शासनप्रदेश था, कौन मंत्री था, वह किस धर्मका था, उसने कौन कौन से सुकृत किये, आदि अनेक महत्त्वपूर्ण बातोंका पता जैनलेखोंसे ही चलता है । लोकजीवनकी चीजें भी वर्णित हैं, जैसे कि पायली - प्रादेशिक नाप, प्रचलित सिक्के आदि अनेक व्यवहारिक उल्लेख भी है । कामरांका बीकानेरपराक्रमण किसी भी इतिहाससे सिद्ध नहीं है, पर जैनप्रतिमा लेखमें यह घटना खुदी है' | अन्वेषण आज हमारे सम्मुख जैनपुरातत्त्वका प्रामाणिक व श्रृंखलाबद्ध सविस्तृत इतिहास तैयार नहीं है । यह बड़े खेदकी बात है, परन्तु इसके साधन ही नहीं हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता। यों तो आंग्लशासनकी ओरसे, समुचित रूप से शासन चलाने के लिए या नवीन प्रांग्ल अधिकारी शासित प्रदेश से परिचित हो जायें, इस हेतुसे प्रायः भारतके स्वशासित 'राजस्थानी वर्ष १ अं०–१–२, पृ० ५४ । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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