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________________ जैन पुरातत्त्व १३३ प्रतिमा-लेखोंकी चर्चा भी आवश्यक है । इसे भी दो भागोंमें बाँट देना समुचित प्रतीत होता है । प्रस्तर और धातुप्रतिमा मौर्यकालीन जैन-प्रतिमाएँ लेख रहित हैं। कुषाण कालीन सलेख हैं । गुप्तकालीन कुछ प्रतिमाओंपर लेख खुदे हुए पाये हैं। बहुसंख्यक पुरानी प्रस्तरप्रतिमा लेख रहित ही उपलब्ध हुई हैं, उनकी निर्माणशैलीसे उनका कालनिर्णय किया जा सकता है। १०वीं शताब्दीके बादकी मूर्तियाँ प्रायः लेखयुक्त रहती थीं। ये लेख मूर्तिके अग्रभागके निम्नभागमें लिखे जाते थे, पर स्थापना करते समय सीमेंट आदि पदार्थ लग जानेसे उनके लेख आधेसे अधिक तो नष्ट हो जाते हैं। पीछेके लेख अनुभवी ही, दर्पणके सहारे पढ़ पाते हैं। उस ओर परम्परा और संवत्का ही निर्देश रहता है । हाँ, कुछेक लेख ऐसे भी दृष्टिगोचर हुए हैं, जिनसे समसामयिक घटनापर भी प्रकाश पड़ जाता है । पर ऐसे लेख कम हैं । __ प्राप्त लेखोंके आधारपर धातुप्रतिमाअोंका इतिहास मैंने गुप्तकालके लगभगसे माना है। उस युगको मूर्तियाँ लेखवाली हैं। गुप्तोत्तरकालीन प्रतिमाएँ दोनों प्रकारकी मिलती हैं। ८वीं शतीके बाद तो इनपर लेखका रहना आवश्यक हो गया था । तदनन्तर धातुमूर्तियोंका निर्माण काफी हुआ। धातुप्रतिमाओंपर जो लेख मिल रहे हैं, उनकी लिपि बहुत ही सुन्दर और ग्रन्थलेखकी स्मृति दिलाती है । भारतीय लिपियोंके क्रमिक विकासके अध्ययनमें इनकी उपयोगिता कम नहीं है, कारगा कि जैनोंको छोड़ कर भिन्न-भिन्न शताब्दियोंके लेख व्यवस्थित रूपसे अन्यत्र मिलेंगे कहाँ ? इन लेखोंकी विशेष उपयोगिता जैन-इतिहासके लिए ही हैं, तथापि कुछ लेख ऐसे मिले हैं, जो महत्त्वपूर्ण तथ्यको लिये हुए हैं। ___१"इम्पीरियल गुप्त" और "गुप्त इन्स्किप्शन्स" श्री राखालदास वैनरजी और फ्लीट । Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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