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________________ जैन-पुरातत्व ज़िलोंके 'गजेटियर' तैयार करवाये गये थे। इनमें प्रासंगिक रूपसे कुछ अंशोंमें उस जिलेके पुरातत्त्वपर, सीमित शब्दावलीमें प्रकाश डाला गया है-जैन-पुरातत्त्वपर बहुत कम । यह कार्य प्रायः अंग्रेजोंद्वारा ही सम्पन्न हुआ, जो जैनधर्म व संस्कृतिसे अपरिचित-से थे। ऐसे ही गजेटियरोंके आधारपर स्वर्गीय ब्रह्मचारी सीतलप्रसादजीने 'प्राचीन जैन-स्मारक' शीर्षक कुछ भाग प्रकाशित कर, जैनसमाजका ध्यान अपनी कलात्मक विरासतकी ओर आकृष्ट किया था। ब्रह्मचारीजीका यह कार्य अनुवादमूलक है। उनके अनुभवका समुचित उपयोग, यदि इन अनुवाद परक भागोंमें हुआ होता, तो निस्सन्देह कार्य अति सुन्दर होता और अंग्रेजोंकी ग़लतियोंका परिमार्जन भी हो जाता । पुरातत्त्वका अध्ययन सापेक्षतः अधिक श्रमसाध्य विषय है । चलती भाषामें इसे 'पत्थरोंसे सर फोड़ना' या 'गड़े मुर्दे उखाड़ना' कहते हैं । बात ठीक है । जबतक मनुष्य अपना समुचित बौद्धिक विकास नहीं कर लेता, तबतक वह अतीतकी अोर झाँकनेकी क्षमता नहीं रखता । अन्वेषक, यदि अध्ययनीय या गवेषकीय विषयकी सार्वभौमिक उपयोगिताको समझ ले, तो विषय-काठिन्यका प्रश्न ही नहीं उठता, मुझे तो लगता है कि मानसिक दौर्वल्यजनित वैचारिक परम्परा, अन्वेषणकी ओर, जेनयुवकोंको उत्प्रेरित नहीं कर सकी। रूसके सुप्रसिद्ध लेखक मेक्सिमगोर्की सोवियत लेखक समुदायके सन्मुख अपने भाषणमें कहता है "लेखकोंको मैं कहता हूँ कि रूसके प्राचीन इतिहासमेंसे युग-युगके स्तरोंको खोजो और मैं विश्वास दिलाता हूँ कि इनमेंसे आपको भरपूर लेखन-सामग्री उपलब्ध होगी।” मैं कुछ परिवर्तनके साथ कहना चाहूँगा कि भारतवर्ष हजारों वर्षोंके इतिहास, सभ्यता और संस्कृतिका भव्य खंडहर है। इसकी खुदाईका, इसकी गवेषणाका अन्त नहीं है । इसके गर्भ में हमारे पूर्वजोंको कीर्तिको उज्वल करनेवाले प्रेरक व पोषक सांस्कृतिक असशेष पड़े हुए हैं। इनपर जमे Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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