SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । शुक्लजीरकं कृष्णजीरकमुपकुची । जीरको जरणोजाजी कणा स्वाद्दीर्घजीरकः । कृष्णजीरः सुगंधिश्व तथैवोद्गारशोधनः ॥ ८१ ॥ कालाजाजी तु सुपवी कालिका चोपकालिका पृथ्वीका कारवी पृथ्वी पृथुः कृष्णोपकुंचिका ॥ ८२॥ उपकुंची च कुंची व बृहज्जीरकमित्यपि । जीरकत्रितयं रूक्षं कटूष्णं दीपनं लघु ॥ ८३ ॥ सग्राहि पित्तलं मेध्यं गर्भाशयविशुद्धिकृत । ज्वरघ्नं पाचनं वृष्यं बल्यं रुच्यं कफापहम् ॥ ८४ ॥ चक्षुष्यं पवनामा नगुलमच्छतिसारहृत् । धान्यकं धानकं धान्यं धाना धानेयकं तथा ॥॥८५ ॥ ( १९ ) जीरक, जरण, अजाजी, कथा, दीर्घजीरक, ये सफेद जीरे के संस्कृतमें नाम हैं ! हिन्दीमें इसे सफेद जीरा, फारसीमें जीरा और अंग्रेजीमें Cumminon Seed कहते हैं । कृष्णाजीर, सुगंधि, उद्गारशोधन यह काले जीरेके संस्कृत नाम हैं । हिन्दी में इसे काला जीरा, फारसी में जीरा स्याह और अंग्रेजीमें Black Caraway Seed कहते हैं । कालाजाजी, सुषवी, कालिका, उपकालिका, पृथ्वीका कारवी, पृथ्वी, पृथु, कृष्णा, उपकुञ्चिका उपकुंची कुनी, तथा बृहज्जीरक यह कलौंजीके संस्कृत नाम हैं। हिन्दी में इसे कलौंजी, फारसी में स्याहदाने, अंग्रेजीमें Small Fennel Flower कहते हैं। तीनों प्रकारके जीरे, रूखे, कटु उष्ण, अग्निदीपक, हलके, ग्राही, पित्तकारक, बुद्धिवर्धक, गर्भाशयको शुद्ध करनेवाले, ज्वरनाशक, पाचक, वीर्यवर्धक, बलकारक, रुचिकारक, कफना शक, नेत्रको हितकर तथा वायु, आध्मान, गुल्म, वमन और अतिसारको - नष्ट करते हैं ॥। ८१-८४ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy