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________________ ( २० ) भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. । धान्यकम् । धान्यकं धानकं धन्वं धाना धानेयकं तथा ॥ ८५ ॥ कुनटी धेनुका छत्रा कुस्तुंबुरु वितुन्नकम् । धान्यकं तुवरं स्निग्धमवृष्यं मूत्रलं लघु ॥ ८६ ॥ तिक्तं कटूष्णवीर्ये च दीपनं पाचनं स्मृतम् । ज्वरघ्नं रोचनं ग्राहि स्वादुपाकि त्रिदोषनुत् ॥८७॥ तृष्णादावमिश्वासकासामाशःकृमिप्रणुत् । आई तु तद्गुणं स्वादु विशेपात्पित्तनाशि तत्८८ ॥ धान्यक, धानक, धान्य, धाना, धानेयक कुनटी, धेनुका, छत्रा, कुस्तुम्बुरु, चित्रक यह घनियेके संस्कृत नाम हैं । धनियां फारसीमें तुख्मेकसनीजई, अंग्रेजी में Coriander Seed कहते हैं । धनियां - कसैला, चिकना, वीर्यनाशक, मूत्रको उत्पन्न करते वाळा, हल्का, तिक्त, कटु, उष्णवीर्य, अग्निदीपक, पाचक, ज्वरनाशक, रुचिकारक, ग्राही, पाक में मधुर, त्रिदोषनाशक तथा प्यास, दाह, वमन, काल, आम अर्श और कृमियों का उन्मूलन करता है । है गीले धनिये के भी गुण सूखेके समान ही हैं किन्तु वह विशेषतः मधुर और पित्तनाशक होता है ॥ ८५-८८ ॥ शतपुष्पा मिश्रेया ! शतपुष्पा शताह्वा च मधुरा कारवी मिसिः । अतिलंबी सितच्छत्रा संहितच्छत्रकापि च ॥ ८९ ॥ छत्रा शालेयशालीनौ मिश्रेया मधुरा मिसिः । शतपुष्पा लघुस्तीक्ष्णा पित्तकृद्दीपनी कटुः ॥ ९० ॥ उष्णा ज्वरानिलश्लेष्मव्रणशूलाक्षिरोगहृत् । मिश्रेया तद्गुणा प्रोक्ता विशेषाद्योनिशूलनुत्॥९१॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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