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________________ (१८) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। अग्निदीपक,तिक्तपित्तकारक,तथा वीर्य,शूल,वात, कफ, उदररोग,पानाह शुल्म, प्लीहा तथा कृमियों को हरती है।। ७५ ॥ ७६ ॥ अजमोदा। अजमोदा खराश्वा च मायूरो दीप्यकस्तथा ॥७७॥ तथा ब्रह्मकुशा प्रोक्ता कारवी लोचमस्तका । अजमोदा कटुस्तीक्ष्णा दीपनी कफवातनुत् ॥७॥ उष्णा विदाहिनी हया वृष्या बलकी लघुः । नेत्रामयकफच्छर्दिहिकाबस्तिरुजो हरेत् ।। ७१ ॥ अजमोदा, खराश्वा,मायूर,दीप्यक, ब्रह्मकशा कारवी,लोचमस्तका यह अजमोदके संस्कृत नाम हैं। हिन्दीमें इसे अजमोद, फारसीमें करपस और अंग्रेजीमें Celery Seed कहते हैं। अजमोद-कटु, तीक्ष्ण, अग्निदीपक, कफ, वातको हरनेवाली, उष्ण, दाहको करनेवाली,हदयको प्रिय लगनेवाली,वीर्थधक बल कारक,इल की तथा नेत्ररोग, कफ, वमन, हिचकी तथा बस्ति (मसाना ) के रोगोंको नष्ट करती है ॥ ७७-७९ ।। पारसीकयवानी। पारसीकयवानी तु यवानीसदृशा गुणैः । विशेषात्पाचनी रुच्या ग्राहिणी मादिनी गुरुः॥८॥ पारसीकयवानी गुणोंमें यवानी ही समान है किंतु यह विशेषतासे याचन करनेवाली,रुचिकारक,ग्राही,मदकारक और भारी है। इसे हिंदी में खुरासानी अजवाइन, फारसी में तुरुमें वंजे और अंग्रेजीमें Artimisiamaritema कहते हैं । खुरासानी अजवायन अधिक खानेसे विषका प्रभाव करती है ॥ ८०॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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