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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । ( ४०३ ) नमक, जीरा और सज्जी डालकर पानी से मांडले और बहुत पतला पतला बेलले उसको पर्पट (गण्ड) कहते हैं। पापड अंगारोंवर भूनकर खावे तो प्रत्यन्त रुचिकारी, अग्निप्रदीपक, पाचक, रूक्ष और किंचित् भारी है, इसी प्रकार मूँग की दालके पापड़ों में भी यही गुण हैं परन्तु विशेष इनके और हितकारक हैं। चनेके पापडोंमें चनेके सदृश गुण हैं । जो पापड स्नेहमेंभुने जायँ तो मध्यम गुणदायक हैं ।। ४०-४२ ॥ अथ पूरिका ( कचारी ) । माषाणां पिष्टिकां पूर्यावणाई कहिं ग्रभिः । तया पिष्टिकया पूर्णा समिताकृत पोलिका ॥ ४३ ॥ ततस्तैलेन पक्का सा पूरिका कथिता बुधैः । रुच्या स्वाद्वी गुरुः स्निग्धा बल्या पित्तास्रदूषिका ४४ चक्षुस्तेजोहरी चोष्णा पाके वातविनाशिनी । तथैव घृतपकापि चक्षुष्या रक्तपित्तहृत् ॥ ४५ ॥ उडकी पिट्टी में नमक अदरक तथा हींग डालकर मैदाकी लोई में भर लेवे, पश्चात् बेजकर इसको तेलमें सेक लेवे, उसको पूरिका ( कचौरी ) कहते हैं । कचौरी - स्वादिष्ट, भारी, स्निग्ध, बलकारी पित्त तथा रक्तविकारको दूषित करनेवाली, नेत्रोंका तेज हरनेवाला, पाकमें गरम और वातनाशक है । यदि यह घीमें बनाई हुई होय तो नेत्रोंको हितकारी और रक्तपित्तनाशक है ॥ ४३-४५ ॥ / अथ वटा ( बेरा ) । माषाणां पिष्टिकां युक्तां लवणाई कहिंगुभिः । कृत्वा विदध्याद्वांस्तांस्तैलेषु पचेच्छनैः ॥ ४६ ॥ विशुष्का वटका बल्या बृंहणा वीर्यवर्द्धनाः । वातामयहरा रुच्या - विशेषादर्दितापहाः ॥ ४७ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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