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________________ (४०२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। अथ वेढमिका ( वेढई)। माषपिष्टिकया पूर्णगर्भा गोधूमचूर्णतः । रचिता रोटिका सैव प्रोक्ता वेढमिका बुधैः ॥३७॥ भवेटेढमिका बल्या वृष्या रुच्याऽनिलापहा। उष्णा सन्तर्पणी गुर्वी बृंहणी शुकला परम् ॥३८॥ भित्रमूत्रमला स्तन्यमेदापित्तकफप्रदा । गुदकालाईितवामपंक्तिशूलानि नाशयेत् ॥ ३९ ॥ गेहूँ के मडेहुए आटेमें उडदकी पिट्ठी भरके रोटी बनावे उसको पिट्ठोंकी रोटी (बेढई ) कहते है। या रोटी-बलदायक, पण्य, रुचिकारक, वातनाशक, गरम, तृप्तिदापक, भारी, पुटिकारक, अत्यन्म वी बर्द्धक, मलभेदक, मूत्र लानेवाली, दष तथा मेदवर्धक, पिन ताकफकार और गुदकील (गुदाके मस्से), मदितवान, सास और पंक्तिशूल शक है ॥ ३७-३९ ॥ अथ पर्पटाः (पापड)। धूमसारचिता हिंगुहरिद्रालवणैर्युताः । जीरकस्वर्जिकाभ्याञ्च तनूकृत्य च वेल्लिताः ॥४०॥ पर्पटाम्ते सदांगारभृष्टाः परमरोचकाः। दीपनाः पाचना रूक्षा गुरवः किंचिदीरिताः ॥४॥ मौद्गाश्च तद्गुणाः प्रोता विशेष लघवो हिताः। चणकम्य गुणयुक्ताः पर्पटाश्चणकोद्भवाः । स्नेहभृष्टास्तु ते सर्वे भवेयुर्मध्यमा गुणः ॥ १२ ॥ उपद की दालको पानी में भिगोकर छिलके निकाल कर धूप में मुखा वे, उसको पिसवाकर शरीक आटा करने, उस पाटेमें हींग, इनदी, Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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