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________________ ( २१६ ) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । खुरकं मिश्रकं चापि द्विविधं वंगमुच्यते । उत्तमं खुरकं तत्र मिश्रकं त्ववरं मतम् ॥ ३३ ॥ रंग लघु सरं रुक्षमुष्णं मेहकफक्रिमीन् । निहंति पांडु सश्वासं चक्षुष्यं पित्तलं मनाक् ॥ ३४ ॥ सिंहोयथा हस्तिगण निहति तथैव वंगोऽखिल मेहवर्गम् । देहस्य सौख्यं प्रबलेंद्रियत्वं नरस्यपुष्टिविदधातिनूनम् ॥ ३९ रंग, बंग, पु, पिञ्चड, यह वंगके नाम हैं। वंग-खुरक और मिश्रक भेदसे दो प्रकारका होता है। खुरक बंग-गुणमें उत्तम होता है और मिश्रक- न्यून होता है। हिन्दीमें कलई और फारसीमें अर्जीज कहते हैं । वंग - हल्की, दस्तावर, रूखी, उष्ण तथा प्रमेह, कफ, कृमि, पाण्डु, और श्वासको नष्ट करनेवालो है, मेत्रोंको हितकारी, किंचित पित्तकारक है । जैसे प्रबल सिंह हाथियों के समूहको नाश कर देता है, वैसे बंगभस्म सम्पूर्ण प्रमेह रोगोंको नष्ट करके देहको सुख देता है और पुष्ट करता है। तथा संपूर्ण इंद्रियों को बलवान् करता है ॥ ३२-३५ ॥ यसदम् । यसदं रंगसदृशं रीतिहेतुश्च तन्मतम् I यसदं तुंबरं तिक्कं शीतलं कफपित्तहृत् ॥ ३६ ॥ चक्षुध्यं परमं मेहान्पांडुं श्वासं च नाशयेत् । यशद, रंगसदृश पौर रीतिहेतु यह जस्तेके नाम हैं। इसे फारसीमें रूरा तूतिया और अंग्रेजीमें zinc कहन हैं। किसी किसी ग्रंथ में यसद को खर्पर और रसक नामसे भी निखा है। याज कल वैद्य स्वर्णमालिनी वसन्तमें खर्परकी जगह इसकी का प्रयोग करते हैं। यशद- -कसैला तिक, शीतल, कफपित्तनाशक, नेत्रको परम हितकारी तथा प्रमेह, " Aho : Shrutgyanam पाण्डु और श्वासको नष्ट करता हूँ ॥ ३५ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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