SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२१७) सीसकम् । दृष्ट्वा भोगिसुतां रम्यां वासुकिस्तु मुमोचयत् ॥३७ वीर्य जातस्ततो नागः सर्वरोगापहो नृणाम् । सीसं वधं च वप्रं च योगेष्टंनागनामकम् । सीसं वंगगुण ज्ञेयं विशेषान्मेहनाशनम् ॥ ३८ ॥ नागस्तु नागशततुल्यबलं ददाति व्याधि विनाशयति जीवनमातनोति । वह्नि प्रदीपयति कामबलं करोति मृत्युं च नाशयति सन्ततसेवितस्सः ॥३९॥ पाकेन हीनौकिल वंगनागौ कुष्ठानि गुल्मांश्च तथातिकष्टान् । पांडुप्रमेहानल सादशोथभगंदरादीन् कुरुतः प्रभुक्तौ ॥४०॥ सर्पराजकी कन्याको देखकर वासुकी नागका जो वीर्य पतन हुआ, उससे मनुष्योंके सब रोगोंके दूर करने वाला सीला उत्पन्न हुआ। इसके सीस, वध, वप्र, योगेष्ट और नागके जितने पर्यायवाचक शब्द हैं, यह संस्कृत नाम हैं। हिन्दीमें सिक्का या शीशा, फारसीमें सुर्व और अंग्रेजीमें Lead बहते है। सीक में सम्पूर्ण गुप बंगक समान है। विशेषतासे प्रमेहोको नाश करता है । सीसकी उत्तम बनी हुई भस्म विधिवत सेवन करनेसे शरीरमें हाथियोंके समान बल पाता है। प्राधिये दूर होती हैं। भायु बढती है, जठरान प्रदीप्त होती है, कामदेवका बल बढता है, पौर मुत्युका भी नाश होता है। यादे वंग और नागको बिना विधिवत भस्म किये कच्ची भस्मका सेवन किया जाय तो पतिकष्टदायक, कुष्ठ, गुल्म, पाण्ड, प्रमेह, मंदाग्नि, शोथ और भगंदर मादि रोगोको करती है ।। ३७-४०॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy