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________________ (२१४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । खनिज, तीसरी कृत्रिम इनमें कृत्रिम चांदी, वंग पारेके योगसे बनाई जाती है। चांदी, प्य, रजत, तार, चन्द्रकांती, सितप्रभ, बसुत्तम कुप्य, खजूर और रंगवीजक इन नामोंवाली है। जो चांदी भारी, चिकनी, नरम, श्वेत, दाह और छेदन में भी सफेद, चोटसे न टूटनेवाली, वर्ण करके युक्त और चन्द्रमा जैसी स्वच्छ इन नौ गुणोंवाली चांदी उत्तम . कही जाती है । तथा जो चांदी कठोर, बनावटी, रूक्ष, लालवर्णकी, पीत दलवाली, हलकी, दाहमें और छेदनमें विवर्ण और घनकी चोट लगनेसे नष्ट हो जाय ऐसी चांदीको दुष्ट चांदी कहते हैं। रूप्य (चांदी) तिक्त, कषाय, अम्ल, पाक और इसमें मधुर और दस्तावर है । तथा उमरको स्थापन करनेवाली, स्निग्ध, लेखन, वात पित्तको जीतनेवाली और प्रमेहादि रोगोंको शीघ्र नष्ट करनेवाली है। यदि अशुद्ध चांदीका सेवन किया नाय तो ताप, विबंध, शुक्रनाश, बलकी हानि और अनेक रोगोको उत्पन्न करनेवानी होती है ॥ १५-२४ ॥ ताम्रम् । शुक्रं यत्कार्तिकेयस्य पतितं धरणीतले । तस्मात्तानं समुत्पन्न मिदमाहुः पुराविदः ॥ २५ ॥ ताम्रमोदुंबरं शुल्बमुदुंबरमपि स्मृतम् । रविप्रियं म्लेच्छमुखं सूर्य्यपर्यायनामकम् ॥२६॥ जपाकुसुमसकाशं स्निग्धं मृदु घनक्षमम् । लोहं नागोज्झितं तानं मारणाय प्रशस्यते ॥२७॥ कृष्णं रूक्षमतिस्तब्धं श्क्तं चापि घनासहम् । लोहनागयुतं चेति शुलं दुष्टं प्रकीर्तितम् ॥ २८ ॥ तानं कषायं मधुरं च तिक्तमम्लं च पाके कटु सारकंच पिचापह श्लेष्महरंचशीतोषणस्याल्लघुलेखनंच२९
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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