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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१९१) गलरोगविषध्वंसि कफोत्केशि च रक्तहत् ॥ १३८ ॥ शोषारुचितृषाच्छर्दिहरं बल्यं च बृंहणम् । मिष्टनिंबूफल, मीठेनीबू अथा सर्बती नींबूको कहते हैं। मीठानींबूस्वादिष्ठ, भारी, वात तथा पित्तको जीतनेवाला, कफोक्लेशकारक, रक्तको हरनेवाला, बलकारक, धातुओंको पुष्ट करनेवाला तथा गलके रोग, विष, शोष, अरुचि, तृपा और यमनको दूर करनेवाला है १३८ । कर्मरंगम् । कर्मरंगं हिमं ग्राहि स्वादम्लं कफवातहत् ॥५३९॥ कर्मरंगको हिन्दीमें करमख और अंग्रेजीमें Carmb ola कहते हैं। करमख-शीतल, ग्राही, खटूटा, स्वादु और कफ-वातका नाश करने वाला है॥ १३९ ॥ अम्लिका। अम्लिका चुक्रिकाऽम्ली च चुक्रा दंतशठापि च । अम्ला च चिंचिका चिंचा तितिडीका च तितिडी। अम्लिकाम्ला गुरुतिहरी पित्तकफास्रकृत् । पक्का तु दीपनी रूक्षा सरोष्णा कफवातनुत् ॥१४॥ अमिनका अम्ली, चुक्रिका, चुका, दन्तशठा, अम्ला, चिंचिका, चिंचा, तितिडीका और तितिडी यह इमलीके नाम हैं । इसको अंग्रेजीमें Tame irined कहते हैं। इमली-खटूटी, भारी, वातनाशक और पित्त, कफ तथा रक्तविकारको करनेवाली है । पकी हुई इमली- दीपन, रूक्ष, दस्तावर और कफ तथा वातको हरनेवाली है ॥ १४० ॥ १४१ । अम्लवेतमम् । स्यादम्लवेतसं चुके शतवेधि सहस्रभित् । अम्लवेतसमत्यम्लं भेदन लघु दीपनम् ॥ १४२ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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