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________________ ( १९२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । हृद्रोगशलगुल्मघ्नं पित्तलं लोमहर्षणम् । रूक्षं विण्मुत्रदोषघ्नं प्लीहोदावर्तनाशनम् ॥१४३॥ हिकानाहारुचिश्वासकासाजीर्णवमिप्रणुत् । कफवातामयध्वंसिच्छागमांसद्रवत्वकृत् ॥ १४४ ॥ चणकाम्लगुणं ज्ञेयं लोहसूचिद्रवत्वकृत। अम्लवेतस, चुक,शतवेधि, सहस्रभित यह अम्लवेतके नाम हैं। इसको हिन्दीमें अमलवेत, फारसोमें तुर्षक और अंग्रेजीमें Com mom Soral करते हैं । अम्ल वेत अत्यन्त खटा, भेदन, लघु, दीपन, पिन कारक, लोम हर्षण करने वाला, बकरी के मांस तथा लोहेकी सूके पिघलानेवाला,चणकके क्षारके समान गुणोंवाला और हृदयके रोग, शूल, गुल्म, विष्ठा और मुत्रके दोष,प्लीहा,उदावर्त, हिचकी आनाह, अरुचि,श्वास, काल,अजीर्ण, वमन और कफ तथा वायुके रोगोंको दूर करता है ॥ १४३-१४४ ॥ वृक्षाम्लम् । वृक्षाम्लं तितिडीकं च चुकं स्यादम्लवृक्षकम् १४५॥ वृक्षाम्लमाममम्लोष्णं वातघ्न कफपित्तलम् । पक्वं तु गुरु संग्राहि कटुकं तुवरं लघु ॥ १४६॥ अम्लोष्णं रोचनं रूक्षं दीपनं कफवातहत् । वृक्षाम्ल, तिन्तिडीक, चुक्र और अम्लवृक्ष यह अम्लवृक्ष (अमलवेत) के नाम हैं। इसे हिन्दीमें अम्लवेत और अंग्रेजीमें Kokam Balten tree कहते हैं। कच्चा अम्लवृक्ष-खट्टा, गरम, वातनाशक, कफ और पित्तको बढानेवाला होता है। पका हुआ-भारी, ग्राही, कदु, कषाय, हलका, खट्टा, गरम, रुचिकारक, कक्ष, अग्निदीपक तथा कफ और वातको हरनेवाला है। १४५ ॥ १४६ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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