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________________ ( ११६ ) भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. । काशः । काशः कशेक्षुरुद्दिष्टः स स्यादिक्षुरकस्तथा ॥ १६१॥ इक्ष्वालिकेक्षुगंधा च तथा पोटगलः स्मृतः । काशः स्यान्मधुरस्तिक्तः स्वादुपाको हिमःसरः१६२॥ मूत्रकृच्छ्राश्मदाहास्रक्षयपित्ताक्षिरोगजित ।. काश, काक्षु, इक्षुरस, इक्षुवाळिका, इक्षुगन्धा और पोटगल यह कास के नाम हैं । कास-- मधुर, तिक्त, पात्र में मधुर, शीतल, दस्तावर और मूत्रकृच्छ्र, पथरी, दाह, रक्तविकार, क्षय, पित्त, नेत्ररोग इनको हरनेवाली है ।। १६१ ।। १६२ ।। गुन्द्रः । गुन्द्रः पटेरको गुत्थः शृंगवेराभमूलकः ॥ १६३ ॥ गुंद्रः कषायो मधुरः शिशिरः पित्तरक्तजित् । स्तन्यः शुक्ररजोमूत्रशोधनो मूत्रकृच्छ्रहृत् ॥१६४॥ गुन्द्र, पटेरक, गुत्थ, श्रृंगवेराभमूलक यह गुन्द्रके नाम हैं। गुन्द्र कषाय, मधुर, शीतल, दूध बढानेवाला, वीर्य्य, रज और मूत्रको शुद्ध करनेवाला तथा पिन, रक्तविकार, मूत्रकृच्छ्र इनको नष्ट करनेवाला है ॥ १६३ ॥ १६४ ॥ एरका | एरका गुंद्रमला च शिवगुंद्रा शरीति च । एरका शिशिरा वृष्या चक्षुष्या वातकोपिनी १६५ ॥ मूत्रकृच्छ्राश्मरीदाहपित्तशोणितनाशिनी । परका, गुद्रमूला, शिव गुन्द्रा और शरीति यह एरकाके नाम हैं । एरकाशीयल, वीर्यवर्द्धक, नेत्रोंको हितकर, वातवर्द्धक और मूत्रकृच्छ्र, बधरी, दाह, पित्त तथा रुधिर विकार नाशक a ७ १६५ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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