SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. 1 कुशः । कुशो दर्भस्तथा बर्हिः सूच्ययो यज्ञभूषणः ॥ १६६ ॥ ततोऽन्यो दीर्घपत्रः स्यात्क्षुरपत्रस्तथैव च । . दर्भद्रयं त्रिदोषघ्नं मधुरं तुवरं हिमम् ॥ १६७ ॥ मूत्रकृछ्राश्मरीतृष्णावस्तिरुक् प्रदरास्रजित् । ( ११७ ) कुश, दर्भ, बर्हि, सूच्यग्र, यज्ञभूषण यह कुशाके नाम हैं । क्षुरपुत्र भी ऐसी ही है परन्तु लम्बे पत्तोंवाली होती है। दोनों कुशा-त्रिदोषनाशक मधुर, कसैली, शीतल तथा मूत्रकृच्छ्र, पथरी, प्यास, वस्तिरोग और प्रदरको हरनेवाली है ॥ १६६ ॥ १६७ ॥ कतृणम् । कत्तृणं रोहिषं देवजग्धं सौगंधिकं तथा ॥ १६८ ॥ भूतीकं व्याम पौरं च श्यामकं धूपगंधिकम् । रोहिषं तुवरं तिक्त कटुपाकं व्यपोहति ॥ १६९ ॥ हृत्कंठव्याधिपित्तास्रशूलकासकफज्वरान् । पौर, श्यामक, कण, रोहिष, देवजग्ध, सौगंधिक, भूतीक, ध्याम, धूपगंधिक यह रोहिषके नाम हैं। रोहिष-कषाय, तिक्त, पाकमें कट्टु तथ हृदयव्याधि, कण्ठव्याधि, पित्त, रक्त विकार, शूल, कास, कफ और वर को नष्ट करता है ॥ १६८ ॥ १६९ ॥ भूस्तृणम् । भूतीकं गुह्यबीजं च सुगंधं गोमयप्रियम् ॥ १७० ॥ भूस्तृणं तु भवेच्छत्रा मालातृणकमित्यपि । भूस्तृणं कटुकं तिक्तं तीक्ष्णोष्णं रोचनं लघु ॥ १७१ ॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy